Book Title: Mahakavi Bhudhardas Ek Samalochantmaka Adhyayana
Author(s): Narendra Jain
Publisher: Vitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer
View full book text
________________
एक समालोचनात्मक अध्ययन
285 के रूप में शीर्षस्थान पर प्रतिष्ठित होने की अधिकारिणी बन गयी थी, इसलिए भूधरदास ने अपने साहित्य की रचना ब्रजभाषा में ही की। भूधरदास के साहित्य की भाषा सरस ब्रजभाषा है। यह ब्रजभाषा की उन सब विशेषताओं से युक्त है जो ब्रजभाषा में पाई जाती है । भूधरदास द्वारा प्रयुक्त ब्रजभाषा की कतिपय विशेषताएँ निम्नलिखित है :1, आकारान्त के स्थान पर ओकारान्त या औकारान्त का प्रयोग दिखाई
देता है । यथा - आयो, बडो, भलो आदि । 2, ए के स्थान पर ऐ का प्रयोग किया गया है। जैसे - लहै, जानै, धरै
आदि। 3. संयुक्त वर्गों को स्वरविभक्ति के द्वारा अलग करने की प्रवृति देखी
जाती है । यथा - परवीन, निरधार, सतसंगति, कलपित, विसतार, शब्द, परसिद्ध, पारस, जनम, पदारथ आदि । संयुक्त वर्गों को संयुक्त और पृथक् - दोनों रूपों में लिखा गया है - भरम और भ्रम, परमारथ और परमार्थ, परमान और प्रमाण, विकलप,
और विकल्प आदि। मुखसुख या उच्चारण सुविधा के कारण संयुक्त वर्गों में से एक का लोप कर दिया है। स्तुति को ति, चैत्य को चैत, स्थान को थान, धुति को दुति, स्थिति को थिति, स्वरूप को सरूप, स्तम्भ को थंभ, दुष्ठ को दुठ, स्थिरता को थिरता, फुल्लिग को फुलिंग आदि । प्राय: संयुक्त वर्णों का सरलीकरण करने के लिए आधे वर्ण को पूरा करके रखा गया है, जिससे उच्चारण सम्बन्धी सुविधा हुई है। यथा - भरता, बैडूरज, मारग, सरवारथ, शुकल, मूरति, सरधान, समकित, ततकाल, ग्रीष्म, अपकीरति, विसन, सुमरन, विघन, अलप आदि ।
चूंकि भूधरदास की भाषा ब्रजभाषा है; इसलिए उन्होंने दूसरी भाषा के शब्दों को ग्रहण करते समय उनकी ध्वनियों को अपनी प्रकृति के अनुसार ढाल लिया है । ध्वनियों का यह परिवर्तन द्रष्टव्य है - श को स में बदलना - विलास, सीस, ससि, सुन्न, निरास, अंस, सारद, सोक, सर, कासी इत्यादि ।