Book Title: Mahakavi Bhudhardas Ek Samalochantmaka Adhyayana
Author(s): Narendra Jain
Publisher: Vitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer
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महाकवि भूधरदास
तातें इह समै जोग पढ़े बालबुद्धि लोग, पारसपुरान पाठ भावाबद्ध कीनो है ॥
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इन कथनों से स्पष्ट है कि कवि ने धर्मभावना के कारण देशभाषा में अपने ग्रन्थों की रचना की है। इन रचनाओं में देशभाषा उनकी है तथा विषयवस्तु परम्परागत है ।
“देशभाषा " से कवि का आशय तत्कालीन लोक प्रचलित विकासशील भाषा से है। जहां एक ओर यह भाषा बोलचाल की भाषा थी, वहाँ दूसरी ओर साहित्य की भी भाषा थी । इस भाषा को बालबुद्धि (अल्पबुद्धि) भी पढ़ सकते हैं। इस प्रकार कवि द्वारा प्रयुक्त भाषा (जिसे वह भी "भाषा" ही कहता है) वस्तुतः आगरा, ग्वालियर आदि विशाल हिन्दी भाषी प्रदेश की लोकभाषा व साहित्यभाषा “बज्रभाषा” ही है, क्योंकि उस समय लोक एवं साहित्य की प्रचलित भाषा " ब्रजभाषा" ही थी । यद्यपि कवि द्वारा प्रयुक्त भाषा ब्रजभाषा ही है फिर उसमें अनेक विदेशी भाषाओं के शब्द दिखलाई देते हैं। साथ ही कहीं कहीं स्थानीय भाषा के शब्द (देशी शब्द) तथा खड़ी बोली की समीपता भी दृष्टिगत होती है।
यद्यपि मूलतः कविकृत रचनाओं की भाषा शुद्ध साहित्यिक ब्रजभाषा है; तथापि वह भाषा सभी रचनाओं में एक जैसी नहीं है, उसमें उत्तरोत्तर विकास के दर्शन होते हैं । कवि द्वारा रचित प्रारम्भिक रचना जैनशतक में पश्चात्वर्ती रचना पार्श्वपुराण जैसी प्रौढ़ता नहीं हैं। उसकी भाषा में बहुतायत से देशी, विदेशी भाषाओं के अनेक शब्दों का प्रयोग हुआ है। शब्दों का यह प्रयोग कहीं तो अपनी प्रकृति के अनुसार ज्यों का त्यों किया गया है तो कहीं हिन्दी भाषा की प्रकृति के अनुसार यथेच्छ परिवर्तन करके किया गया है। जैनशतक में प्रयुक्त भाषा में प्रचलित मुहावरों और लोकोक्तियों का प्रयोग सर्वथा अनूठा हैं। इससे भाषा सौन्दर्य में अभिवृद्धि ही हुई है। कवि की भाषा का पूर्ण विकसित, परिमार्जित और प्रौढ़रूप पार्श्वपुराण नामक महाकाव्य में मिलता है । पार्श्वपुराण की भाषा सरस साहित्यिक ब्रजभाषा है I
आलोच्य युग में ब्रजभाषा एक विशाल भूभाग की भाषा बन चुकी थी । उसका साहित्य में पर्याप्त प्रयोग होने लगा था। साथ ही राजदरबारों में भी उसे उचित सम्मान दिया जाने लगा था। वह देश की समस्त भाषाओं में लोकभाषा 1. पार्श्वपुराण पीठिका पृष्ठ 3