Book Title: Mahakavi Bhudhardas Ek Samalochantmaka Adhyayana
Author(s): Narendra Jain
Publisher: Vitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer
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महाकवि भूधरदास :
में कवि ने प्राय: अपभ्रंश की प्रकृति वाली विरज्जहिं, लज्जहिं, करिज्जै, लिज्जै, दज्झै, अरुज्झै, समप्पै, थप्पै, रुप्पै, मुच्चै आदि क्रियाओं का प्रयोग किया है।
अडिल्ल • अडिल्ल मात्रिक सम छन्द है।' अडिल्ल छन्द का प्रयोग वीररस एवं सामान्य इतिवृत्तात्मक प्रकरणों में हुआ है। भूधरदासकृत प्रबन्ध एवं मुक्तक प्रकीर्ण साहित्य दोनों ही रूपों में इसका प्रयोग हुआ है। कविकृत पार्श्वपुराण में 9 बार प्रकीर्ण साहित्य में केवल 1 बार इसका प्रयोग हुआ है । कवि ने अडिल्ल छन्द का प्रयोग नरक वर्णन स्वर्ग वर्णन, बाबीस परीषह आदि वर्णनात्मक स्थलों पर तथा कथा को गति देने के लिए किया है।
पद्धड़ी - यह मात्रिक सम छन्द है। अपभ्रंश साहित्य में सामान्य वर्णन में उसका प्रयोग किया गया है। हिन्दी में चारण कवियों ने सामान्य वर्णन की परम्परा को गौण रखकर युद्धवर्णन एवं वीररस के वर्णन के लिए इसका प्रयोग किया है। पार्श्वपुराण में यह 74 बार प्रयुक्त हुआ है। कवि ने इसके प्रयोग में हिन्दी की परम्परा का निर्वाह न करते हुए अपभ्रंश की सामान्य परम्परा का पालन किया है। पार्श्वपुराण में प्रकृति वर्णन, सोलह स्वप्न, जन्म कल्याणक, संवरतत्त्व कथन आदि का वर्णन पद्धडी छन्द में किया गया है।
कुण्डलिया - यह एक मात्रिक छन्द है। यह छन्द अपभ्रंश से लेकर आज तक हिन्दी में व्यवहत होता रहा है। हिन्दी साहित्य के रीति काल में भक्त एवं नीतिवेत्ता कवियों द्वारा कुण्डलिया छन्द का सर्वाधिक व्यवहार हुआ है। भूधरदास के प्रकीर्ण साहित्य में केवल एक बार कुण्डलिया छन्द का व्यवहार हुआ है।
-- ... .-.-... - ... . ..-.-.-. 1. हिन्दी विश्वकोश - सम्पादक डॉ. नगेन्द्र पृष्ठ 170 कलकत्ता 2. छन्द प्रभाकर - जगन्नाथ प्रसाद भानु' पृष्ठ 95 दशम संस्करण 3. पैसा दश प्रमाण कन यह तेरा सब जोर तिस कारण दुख की कथा कहत न आवै ओर । कहत न आवै ओर न भोर उठि वही खराबी हा हा करत विहाय जाय तिसना नहि दावी एक पलक नहिं चेन रे ना सुपना भी पैसा यों ही हीरा जनम बाय तित अजुलि पैसा । गुटका 6766 बीकानेर।