Book Title: Mahakavi Bhudhardas Ek Samalochantmaka Adhyayana
Author(s): Narendra Jain
Publisher: Vitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer
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एक समालोचनात्मक अध्ययन गीत की साणि में गीत की प्रधानता समुपस्थित हो जाती है।
गीत में विभिन्न रागों का प्रयोग होता है। राग स्वर वर्णो से विभूषित वह ध्वनि विशेष है, जो लोगों के चित्त का अनुरंजन करती है। रागों के गायन वादन के लिए समय निर्धारित है। वैसे गायक के स्वर चातुर्य से एक स्वर विशेष का राग दूसरे समय में भी गाया जा सकता है। उसमें भेद केवल सप्तक के स्वर पर बल देने का ही रहता है। फिर भी समय के अनुसार रागों को स्थूल रूप से निम्नलिन्तित तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है।
1 कोमल रे ध वाले भाग - समय प्रात: 4 से 7 बजे तक 2 शुद्ध रे ध वाले राग - दिन एवं रात्रि 7 से 11 बजे तक 3 कोमल ग नि वाले राग - समय दिन एवं रात्रि 11 से 4 बजे तक
1. कोमल रे ध वाले राग - कोमल रे ध वाले भाग के गाने का समय प्रात: 4 बजे से 7 बजे तक का है। इन रागों में उत्तरांग प्रबल होगा तथा शुद्ध मध्यम का बाहुल्य होगा। जैसे प्रभाती, बंगाला, भैरव, भैरवी, रामकली, पंचम और कालंगा। कालंगा इन्हीं स्वरों के रागों में यदि पूर्वांग अथवा तीव्र मध्यम को प्रबल कर दिया जाय तो ये सायं 4 से 7 बजे तक गाये जाने वाले राग हो जायेंगे। यथा गौरी, श्री गौरी घनाश्री इत्यादि।
2. शुद्ध रे ध वाले राग- कोमल रे ध वाले रागों का समय समाप्त हो जाने के बाद दिन के 7 बजे से 11 बजे और रात्रि में 7 बजे से 11 बजे तक शुद्ध रे ध वाले रागों का गायन वादन होता है। उस समय दिन में निर्धारित समय में गाये जाने वाले राग नट, विहाग, कल्याण इत्यादि हैं।
3. कोमल ग नि वाले राग - शुद्ध रे ध वाले रागों के समय के पश्चात् गाये जाने वाले रागों में कोमल ग नि वाले राग आते हैं। उनका समय दिन के 11 बजे से शाम 4 बजे तक और इसीप्रकार रात्रि के 11 से प्रात: 4 बजे तक है। इसप्रकार के रागों में पूर्वांग और उत्तरांग के क्रमश: प्रबल और दुर्बल
1. 'नृत्यं वद्यानुगं प्रोक्तं वाद्यं गीतानुवृत्ति च' वही पृष्ठ 2. सोऽयं ध्वनि विशेषस्तु स्वरवर्ण विभूषितः। रंजको जन वित्तानां स: रागः कथितो बुधः॥ अभिनव राग मंजरी पण्डित विष्णुशर्मा पृष्ठ 8 सन् 1921 बम्बई ।