Book Title: Mahakavi Bhudhardas Ek Samalochantmaka Adhyayana
Author(s): Narendra Jain
Publisher: Vitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer
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महाकवि भूधरदास :
है । अध्यात्म और भक्ति में इसका सफल प्रयोग हुआ है। साथ ही भूधरदास द्वारा यह छन्द सामान्य वर्णन में शांत रस की अभिव्यक्ति के लिए भी प्रयुक्त हुआ है । कवि ने इसका प्रयोग प्रबन्ध और मुक्तक दोनों रूपों में किया है।
इसके अतिरिक्त भूधरसाहित्य में ऐसे छन्दों का भी उल्लेख मिलता है जो तत्कालीन प्रचलित राग और छन्दों के मिश्रित रूप कहे जा सकते हैं। ये छन्द हैं – चाल, बेली चाल, नरेन्द्र जोगीरासा, पामावती, ढाल, एवं कुसुमलता ।
कवि की छन्द योजना के बारे में श्री नेमिचन्द ज्योतिषाचार्य अपने ग्रन्थ "हिन्दी जैन साहित्य परिशीलन" पृष्ठ 161 पर लिखते हैं कि-"कवि धूभदाय के काव्य ग्रन्थों में छन्द वैचित्रय का उपयोग सर्वत्र मिलेगा। इन्होंने सभी सुन्दर छन्दों का प्रयोग रसानुकूल किया है। वैराग्य निरूपण करने के लिए नरेन्द्र (जोगीरासा) छन्द को चुना है। इसमें अन्त में गुरुवर्ण पर जोर देने से सारी पंक्ति तरगित हो जाती है।"
___ संगीत विधान विभिन्न राग - संगीत की परिभाषा देशी और विदेशी विद्वानों के उपन्यस्त की है। किसी के अनुसार संगीत ध्वनि के परिवेश में भावनाओं को व्यक्त करने का प्रयास है ।' तो किसी के अनुसार गीत वाद्य और नृत्य की त्रिवेणी संगीत है। यहाँ पर नृत्य वाद्य का अनुगमन करता है और वाद्य गीत के अनुसार प्रसारित हुआ करता है । इसप्रकार से नृत्य, वाद्य और
... - -.1. पार्श्वपुराण पृष्ठ 6 2. पार्श्वपुराण पृष्ठ 60 3. बननाभि चक्रवर्ति की वैराग्य भावना - प्रकीर्ण तथा पार्श्वपुराण पृष्ठ 17-18 4. बाबीस परीषह - प्रकीर्ण तथा पार्श्वपुराण पृष्ठ 32 से 34 तक 5, णमोकर महातल की ढाल • प्रकीर्ण तथा पार्श्वपुराण पृष्ठ 82 6. पार्श्वपुराण पृष्ठ 35 7. ए हिस्ट्री ऑफ म्यूजिक - पर्सी सी.बक पृष्ठ 12 द्विसीय संस्करण 8. 'गीतं वाचं तथा नृत्यं यं संगीतमुच्यते' संगीत रत्नाकर, श्री सारंगदेव, पृष्ठ 6 आनन्द आश्रम संगीत ग्रंथावली, ग्रंथाक 35 सन् 1876