Book Title: Mahakavi Bhudhardas Ek Samalochantmaka Adhyayana
Author(s): Narendra Jain
Publisher: Vitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer
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महाकवि भूधरदास :
छन्द दो प्रकार के होते हैं- वर्णिक एवं मात्रिक । मध्यकालीन कवियों ने दोनों प्रकार के छन्दों का प्रयोग किया है। भूधरदास ने भी वर्णिक और मात्रिक- दोनों प्रकार के छन्दों का प्रयोग किया है । वर्णिक छन्दों में चामर, मत्तगयन्द सवैया, दुर्मिल सवैया एवं मनहर कवित्त इन चार छन्दों का तथा मात्रिक छन्दों में दोहा चौपाई, सोरठा, अडिल्ल, छप्पय, पद्धति, कुण्डलिया, आर्या, धत्ता, त्रिभंगी, हलाल, हरिगीतिका, रोला- इन तेरह छन्दों का प्रयोग हुआ है ।
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काव्य में अन्तर्निहित भावों की अभिव्यक्ति के लिए स्वर के आरोह व अवरोह की आवश्यकता होती है। भाषा की सजीव अभिव्यक्ति के लिए, नाद सौन्दर्य को उच्च, नम्र, समतल, विस्तृत और सरस बनाने के लिए अनुभूतियों व चिन्तन को प्रभावी बनाने के लिए भाषा को लाक्षणिक बनाने हेतु एवं 'आत्मविभोर करने या होने के लिए छन्द योजना आवश्यक है।
भूधरदास द्वारा प्रयुक्त छन्दों का विवेचन क्रमश: निम्नलिखित है
दोहा - यह एक जछन्द है । संस्कृत में श्लोक और प्राकृत में नाथा के समान अपभ्रंश में दोहा होता है। दोहा अपभ्रंश का अपना छन्द है । जिसे आरम्भ में “ देहा" कहा गया है। उसमें प्रथम व तृतीय चरण में 13-13 तथा द्वितीय व चतुर्थ चरण में 11-11 मात्राएँ होती हैं। हिन्दी तक आते-आते यह छन्द " दोहरा " "दोहा " आदि रूपों में व्यवहृत हुआ है। हिन्दी साहित्य में प्रबन्ध एवं मुक्तक दोनों ही प्रकार की रचनाओं में दोहा छन्द का उपयोग हुआ है I ने भी इस छन्द का प्रयोग प्रबन्ध एवं मुक्तक दोनों ही रूपों में भूधरदास किया है। प्रबन्ध के रूप में "पार्श्वपुराण" में दोहा छन्द का प्रयोग चौपाइयों के बीच-बीच में परिलक्षित होता है। महाकाव्य पार्श्वपुराण में 411 छोहा छन्दों का प्रयोग हुआ है। जैनशतक में 22 दोहा छन्दों का तथा अविशिष्ट प्रकीर्ण साहित्य में 43 दोहा छन्दों का प्रयोग हुआ है। भूधर साहित्य में दोहा छन्द का प्रयोग हिन्दी की परम्परा के अनुसार ही हुआ है। भूधरदास ने दोहे का प्रयोग भक्ति, उपदेश, अध्यात्म, दर्शन आदि के वर्णन में किया है।
1. छन्द प्रभाकर जगन्नाथ प्रसाद भानु पृष्ठ 82
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