Book Title: Mahakavi Bhudhardas Ek Samalochantmaka Adhyayana
Author(s): Narendra Jain
Publisher: Vitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer
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महाकवि भूधरदास : किन्तु वे चल पड़े हैं। अत: उन शब्दों को देशज शब्दों के नाम से सम्बोधित कर सकते हैं । यथा - भोंदू, ढील, पतासा, पूला, खोटी, खरी, खखार, आदि।
विदेशी शब्द - भूधरदास के पदों में अरबी, फारसी आदि विदेशी भाषाओं के शब्दों का भी प्रयोग हुआ है।
अरबी भाषा के शब्द - वजीर, तमासा, मुददत, निहायत, जाहिर, दगा, महल, साहिब, खबर, मरहम, काजी, किताब, अमल, कामिल, खुशवक्त आदि ।
फारसी भाषा के शब्द - मशालची, जहान, तखत, खुशवक्त, म्यान, कमान, दारू, पोश्त, शतरंज, मंजफा आदि । - उर्दू भाषा का खासा तथा यूनानी भाषा का अफीम शब्द भी प्रयुक्त हुआ
है।
राजस्थानी भाषा के शब्दों में नीदड़ी, थांकी, म्हानै, म्हारी, सूतो, कांई, म्हारे, हेली आदि शब्दों का प्रयोग हुआ है।
4. प्रकीर्ण साहित्य या फुटकर रचनाओं की भाषा :
कवि द्वारा रचित जकड़ी, आरती, विनती आदि से सम्बन्धित प्रकीर्ण पद या फुटकर रचनाओं में पूर्व रचनाओं की तरह भाषा का वैशिष्ट्य दिखाई देता है। इनमें भी तत्सम, तद्भव, देशज एवं विदेशी शब्द उपलब्ध होते हैं, जिनका विवरण निम्नांकित है -
तत्सम शब्द - त्रिकाल, प्रणमामि, अक्षत, घोष, प्रोहित, निस्पृह, सूत्र, पल्लव, प्रेक्षणीय, किमपि आदि।
तद्भव शब्द - औसर (अवसर), निर्त (नृत्य), पै (पय), पड़िवा (प्रतिपदा) बांमन (ब्राह्मण), सराध (श्राद्ध), कीरा (कीट), पोहप (पुष्प), दुल्लभ (दुर्लभ), वितर (व्यन्तर), मुकति (मुक्ति), बीजुरी (विद्युत), सीरी (शीत), तुव (तव) , सलाधना (श्लाधार, अपछरा (अप्सरा), भंवरा (अमर), सहाई (साहाय्य), चहूँगति (चतुर्गति), पास (पाव), कोढ़ (कुष्ठ), आदि।
देशज शब्द - दुखिया (दुखी), बिगार (हानि), पेंठ (छोटा और थोड़े समय का बाजार), ढिंग (पास में), गोट (झुंड), अघोरी (घिनोने काम करने वाला), ओखर (उपकरण), बुरजी (गुम्बद), आछे (अच्छ), जिवाये (भोजन कराया), बाट