Book Title: Mahakavi Bhudhardas Ek Samalochantmaka Adhyayana
Author(s): Narendra Jain
Publisher: Vitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer
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महाकवि भूधरदास :
पेलैं कोल्हू मेल के पीसैं घरटी घाल । तावें ताते तेल में, दहें दहन परजाल । पकरि पाय पटक पुहुमि, झटकि परस पर लेहिं । कंटक सेज सुवावहीं, शूली पर धरि देहिं ।। घसै संकटक रुखसों, बेतरनी ले जाहिं।
घायल घेरि घसीटिये, किंचित करुणा नाहिं।। 3. प्रसाद गुण - समास, संयुक्ताक्षर और तत्सम शब्दों से रहित सरल एवं सुबोध शब्दावली में प्रसादगुण दिखलाई देता है ।यथा -
राजा रानी छत्रपति, हाथिन के असवार । मरना सबको एक दिन, अपनी अपनी बार ॥ दलबल देवी देवता, मात पिता परिवार ।
मरती बिरियां जीव को, कोई न राखनहार ।।' शब्द शक्तियों - भूधरसाहित्य में वाचक, लक्षक और व्यंजक शब्दों द्वारा वाच्यार्थ लक्ष्यार्थ और व्यंग्यार्थ को प्रकट करने वाली क्रमश: अभिधा, लक्षणा एवं व्यंजना - तीनों शब्दशक्तियाँ दृष्टिगोचर होती हैं।
1. अभिधा शक्ति - सिद्धान्त कथनों, शान्त और भक्तिरस के प्रसंगों में अभिधाशक्ति सर्वाधिक प्रयुक्त हुई है। यथा -
प्रानी सुख दुख आप, भुगतै पुद्गल कर्मफल । यह व्यवहारी छाप निहचै निज सुख भोगता ।। देह मात्र व्यवहार कर, कहलो ब्रह्म भगवान।
दरवित नय की दिष्टिसों, लोकप्रदेश समान ।। 2. लक्षणा शक्ति - भूधरदास ने जहां एक ओर पृथक् रूप से लक्ष्यार्थ को प्रकट करने के लिए लक्षणाशक्ति का प्रयोग किया है; वहाँ दूसरी ओर
1, पावपुराण कलकसा, अधिकार 3, पृष्ठ 2 2. पार्श्वपुराण कलकत्ता, अधिकार 4, पृष्ठ 30 3. पार्श्वपुराण कलकत्ता, अधिकार 9, पृष्ठ 79