Book Title: Mahakavi Bhudhardas Ek Samalochantmaka Adhyayana
Author(s): Narendra Jain
Publisher: Vitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer
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महाकवि भूधरदास :
(ख) देख्या बीच जहान में।
कोई अजब तमासा जोर, तमासा सुपने का सा ।।
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तन धन अथिर निहायत जग में, पानी पाहिं पतासा । "भूधर" इनका गरब करै जो, धिक तिनका जनमासा ।।'
9. गुरूका स्वरूप एवं महत्त्व - भूधरदास के अनेक पदों में गुरू का स्वरूप बतलाते हुए उनकी स्तुति की गई है, साथ ही गुरुमहिमा प्रदर्शित कर उनके द्वारा बतलाये हुए मार्ग पर चलने की प्रेरणा दी है। (क) बन्दों दिगम्बर गुरुचरण, जग तरण तारण जान।
जे भरप भारी रोग को, हैं राज वैद्य महान ।।. जिनके अनुग्रह बिन कभी, नहिं कटै कर्म जंजीर ।
ते साधु मेरे उर बसहु मेरी हरहु पातक पीर ।। (ख) ते गुरु मेरे मन बसो, जे भक्जलथि जहाज।
आप तिरै पर तारहीं, ऐसे है ऋषिराज ॥ ते. गुरु ।। मोह महारिपु जानि कैं, छाड्यों सब घरबार ।।
होय दिगम्बर वन बसे, आतम शुद्ध विचार ॥ ते. गुरु ।' (ग) वे मुनिवर कब मिलि है उपकारी।
साधु दिगम्बर नगन निरम्बर, संवर भूषणधारी ।।
कंचन काँच बराबर जिनक, ज्यों रिपु त्यों हितकारी ॥" (घ) सुन ज्ञानी प्राणी, श्री गुरु सीख सयानी।
नरभव पाय विषय मति सेवो, ये दुरगति अगवनी॥
1. अध्यात्म भजन गंगा, सं.पं.शानचन्द जैन, पृष्ठ 52 2. वृहत् विनती संमह - जिनवाणी प्रचारक कार्यालय पृष्ठ 7 एवं जैन पद संग्रह
तृतीय भाग पद 73 3. वही दोनों पृष्ठ ४ एवं 77 4. अध्यात्म भजन गंगा, सं.पं. ज्ञानचन्द जैन, पृष्ठ 51 5. भूधरविलास पद 7