Book Title: Mahakavi Bhudhardas Ek Samalochantmaka Adhyayana
Author(s): Narendra Jain
Publisher: Vitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer
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महाकवि भूधरदास
चरखा चलता नाहीं, चरखा हुआ पुराना । पग खूँटे द्वय हाल्न लागे, उर मदरा खखराना । छीदों हुई पाँखड़ी पसली, फिरे नहीं मनमाना ॥' भूधरदास शरीर को गगरी का रूपक देते हुए कहते हैंकाया गगरि जोजरी, तुम देखो चतुर विचार हो ॥ जैसे कुल्हिया काँच की जाके विनसत नाहीं बार हो । माँस मयी माटी लई अरु सानी रुधिर लगाय हो ।
कीन्हीं करम कुम्हार ने, जासों कहूँ की न वसाय हो । इसीप्रकार शरीर को वृक्ष का रूपक प्रदान करते हुए कवि का कथन हैयह तन जंगम रूखड़ा, सुनियों भवि प्रानी । एक बूंद इस बीच है, कछु बात न छानी ॥ गरम खेत में मास नौ, निजरूप दुराया | बाल अंकुरा बढ़ गया, तब नजरों आया ॥
12. श्रद्धानी जीव एवं समकित सावन का महत्त्व - भूधरदास ने सम्यग्दर्शन को "सावन” का रुपक देते हुए उसकी अनेक प्रकार से महिमा बतलायी है तथा सम्यग्दृष्टि श्रद्धानी जीव का महत्त्व भी प्रतिपादित किया हैअब मेरे समकित सावन आयो ।
(क )
बीति कुरीति मिथ्यामति श्रीषम, पावस सहज सुहायो ||
अनुभव दामिनि दमकन लागी
सुरति घटा घन छायो । बोलै विमल विवेक पपीहा सुमति सुहागिनि भायो ।' जग में श्रद्धानी जीव "जीवन मुकत" हैगे ॥ देव गुरु साँचे माने, साँचो धर्म हिये आने । ग्रन्थ ते ही साचे जाने, जे जिन उकत हैंगे ।'
1. हिन्दी पद संग्रह, साहित्य शोध विभाग, जैन पद संग्रह, तृतीय भाग पद 55
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4 व 5. अध्यात्म भजन गंगा, सं. पं. ज्ञानचन्द जैन, पृष्ठ 47
श्री महावीरजी पृष्ठ 152.
3. जैन पद संग्रह, तृतीय भाग पद 66