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________________ 280 ( क ) ( ख ) ( ग ) (ख) महाकवि भूधरदास चरखा चलता नाहीं, चरखा हुआ पुराना । पग खूँटे द्वय हाल्न लागे, उर मदरा खखराना । छीदों हुई पाँखड़ी पसली, फिरे नहीं मनमाना ॥' भूधरदास शरीर को गगरी का रूपक देते हुए कहते हैंकाया गगरि जोजरी, तुम देखो चतुर विचार हो ॥ जैसे कुल्हिया काँच की जाके विनसत नाहीं बार हो । माँस मयी माटी लई अरु सानी रुधिर लगाय हो । कीन्हीं करम कुम्हार ने, जासों कहूँ की न वसाय हो । इसीप्रकार शरीर को वृक्ष का रूपक प्रदान करते हुए कवि का कथन हैयह तन जंगम रूखड़ा, सुनियों भवि प्रानी । एक बूंद इस बीच है, कछु बात न छानी ॥ गरम खेत में मास नौ, निजरूप दुराया | बाल अंकुरा बढ़ गया, तब नजरों आया ॥ 12. श्रद्धानी जीव एवं समकित सावन का महत्त्व - भूधरदास ने सम्यग्दर्शन को "सावन” का रुपक देते हुए उसकी अनेक प्रकार से महिमा बतलायी है तथा सम्यग्दृष्टि श्रद्धानी जीव का महत्त्व भी प्रतिपादित किया हैअब मेरे समकित सावन आयो । (क ) बीति कुरीति मिथ्यामति श्रीषम, पावस सहज सुहायो || अनुभव दामिनि दमकन लागी सुरति घटा घन छायो । बोलै विमल विवेक पपीहा सुमति सुहागिनि भायो ।' जग में श्रद्धानी जीव "जीवन मुकत" हैगे ॥ देव गुरु साँचे माने, साँचो धर्म हिये आने । ग्रन्थ ते ही साचे जाने, जे जिन उकत हैंगे ।' 1. हिन्दी पद संग्रह, साहित्य शोध विभाग, जैन पद संग्रह, तृतीय भाग पद 55 24 4 व 5. अध्यात्म भजन गंगा, सं. पं. ज्ञानचन्द जैन, पृष्ठ 47 श्री महावीरजी पृष्ठ 152. 3. जैन पद संग्रह, तृतीय भाग पद 66
SR No.090268
Book TitleMahakavi Bhudhardas Ek Samalochantmaka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Jain
PublisherVitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer
Publication Year
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size9 MB
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