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एक समालोचनात्मक अध्ययन
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13. हिंसा का निषेध - भूधरदास ने धर्म के नाम पर होने वाली हिंसा का निषेध किया है
ऐसी समझ के सिर धूल।
धरम उपजन हेत हिंसा आचरे अघमूल ॥' इसीप्रकार भूधरदास ने अनहद बाजा, श्रोता, जोगी, काजी, कामिल, ब्राह्ममण, अमली, जुआरी आदि का सच्चा स्वरूप बताया है।'
इसके अतिरिक्त पद संग्रह में कई विनतियाँ, जकड़ी गीत, बधाई गीत, प्रभाती गीत, आदि का वर्णन किया गया है। इसप्रकार भूधरदास के “पदसंग्रह" में विविध पदों के माध्यम से भक्ति, प्रेम, अध्यात्म, नीति, उपदेश आदि अनेक प्रकार के भावों का चित्रण किया गया है । यह चित्रण अपने आप में अनूठा है।
और हिन्दी साहित्य में भूधरदास के महत्त्वपूर्ण योगदान को सूचित करता है। इस योगदान के कारण हिन्दी साहित्य में वे अपना एक विशिष्ट स्थान प्राप्त करने के अधिकारी हैं।
भूधरदास की फुटकर रचनाओं में अनेक विनतियाँ, स्तोत्र, आरतियाँ अष्टक काव्य, निशि भोजन भुंजन कथा, तीन चौबीसी की जयमाला, विवाह समय जैन की मंगल भाषा, ढाल, हुक्का पच्चीसी, बधाई, जकड़ी, होली, जिनगुण मुक्तावली, भूपाल चतुर्विंशति भाषा, बारह भावना, सोलह कारण भावना, वैराग्य भावना आदि सभी का नामोल्लेखपूर्वक भावपक्षीय विश्लेषण पूर्व में किया जा चुका है।
ये सभी फुटकर रचनाएँ मुक्तक काव्य के अन्तर्गत ही आती हैं। इनमें से कुछ रचनाएँ पार्श्वपुराण एवं पदसंग्रह के अंश हैं, जो विभिन्न व्यक्तियों द्वारा पृथक् पृथक् रूप से प्रकाशित कर दिये हैं । इसप्रकार भूधरदास के महाकाव्य "पार्श्वपुराण" एवं महाकाव्येतर रचनाओं के रूप में "जैनशतक' एवं "पदसंग्रह" का भावपक्षीय अनुशीलन विस्तृत रूप से विवेचित किया गया।
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1. अध्यात्म मजन गंगा, सं. पं. ज्ञानचन्द जैन पृष्ठ 55 2. रखता नहीं तन की खबर अनहद बाजा बाजिया वही पृष्ठ 53 3. प्रस्तुत शोध मंय, अध्याय 4