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एक समालोचनात्मक अध्ययन (ड) श्री गुरु शिक्षा देत हैं सुनि प्रानी रे।
सुमर मंत्र नौकार, सौख सुनि प्रानी रे।।' (च) सो गुरुदेव हमारा है सायो।
जोग अनि में को थिर सरहे यह कितना है।"
10. माया का वर्णन • भूधरदास ने कबीर की भाँति माया के ठगनी रूप का वर्णन किया है। माया के ठगनी रूप का रूपक दोनों का समान है।
अन्तर यह है कि जहाँ कबीर ने केवल उदाहरणों द्वारा माया की धूर्तता का विश्लेषण किया है, वहाँ कवि भूधरदास ने माया के मोहक कार्यों का निरूपण करते हुए उसकी ठगई का परिचय दिया है। भूधरदास के इस पद में व्यंग्य का पुट रहने से वह सर्वसाधारण को अधिक प्रभावित करता है । भूधर का माया सम्बन्धी पद इसप्रकार है
सुन ठगनी माया, तै सब जग ठग खाया। दुक विश्वास किया जिन तेरा, सो मूरख पछिताया ॥ आपा तनक दिखाय बीज ज्यों, मूढमती ललचाया। करि मद अंध धर्म हर लीनौं, अन्त नरक पहुंचाया।। केते कंत किये ते कुलटा, तो भी मन न अघाया। किस ही सौं नहिं प्रीति निबाही, वह तजि और लुभाया। 'भूधर' ठगत फिरै यह सबकों, भोंदू करि जग पाया।
जो इस ठगिनी को ठग बैठे, मैं तिसको सिर नाया। 11. शरीर के रूपक - भूधर के पदों में शरीर के लिए अनेक रूपक प्रयुक्त हुए हैं। उनमें कबीर का चरखे का रूपक “चरखा चलै सुरत विहीन" तथा तँबूरे का रूपक “साथी यह तन ठाठ तंबूरे का" के समान भूधरदास के चरखे का रूपक अति साम्य रखता है। वह रूपक है
1. जैन पद संभह तृतीय भाग पद 78 2.वही पद 61