Book Title: Mahakavi Bhudhardas Ek Samalochantmaka Adhyayana
Author(s): Narendra Jain
Publisher: Vitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer
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एक समालोचनात्मक अध्ययन
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पद का मूल स्वर संगीतमय है। "टेक" पद की अपनी प्रवृत्ति है। पूरे भाव में एक-अनेक लोक छन्दों का मिश्रित रूप प्रयोग में आता है। पद के भाव का केन्द्र “टेक" में समाहित रहता है । मुक्तक शैली के छन्द के अन्त में भावोत्कर्ष अभिव्यक्त होता है, जबकि पद शैली में वह "टेक में मुखरित होता
हिन्दी पद साहित्य की दो धाराएँ प्रवाहमान रही हैं-प्रथम सन्तों को "सबद” शैली और दूसरी कृष्ण-भक्तों की पद-शैली 1 सिद्धों के चर्या पदों की तथा नाथों की भावना और प्रतीकों की सम्पदा सन्त कवियों ने ग्रहण की है। कृष्ण भक्तों की पद शैली लोकगीतों पर आधारित है। विद्यापति इसी परम्परा का प्रतिनिधित्व करते हैं। पदों की परम्परा में बहुत कुछ समानता होते हुए भी अपनी निजता के कारण यह परम्परा पद-वाङ्मय को उच्च शिखर पर पहुँचा देती है। परमानन्ददास, कृष्णदास, नन्ददास पर्यन्त अष्टछापी कवियों पर सूरदास का प्रभाव परिलक्षित है ! इससे एऐ मीगलाई जैम्पी लिदासी कवयित्री ने महत्वपूर्ण पदों की रचना की है, जिन्हें हिन्दी और अहिन्दी क्षेत्रों में सर्वाधिक गाया जाता
है।
रामकाव्य के अन्तर्गत तुलसी ने अनेक पदों का सृजन किया है। "गीतावली” की रचना पद शैली में ही हुई है, जिसका विकास “विनयपत्रिका में परिलक्षित है। चूंकि पदों की इस परम्परा में सामाजिक मर्यादा का विशेष ध्यान रखा गया है, इसलिए इनका व्यवहार खुलकर नहीं हो सका है।
उपर्युक्त वैष्णवी भावधारा के समानान्तर जैन भावधारा भी प्रवाहित होती रही है, जिसका विषय आध्यात्मिक और भक्तिपरक रहा है। जैन पद रचयिताओं ने भक्तिपरक, आध्यात्मिक दार्शनिक, विरहात्मक और समाज का चित्रण करने वाले पदों का प्रणयन करके अपने समय की आध्यात्मिक एवं साहित्यिक चेतना को चमत्कृत किया है । इन रचयिताओं में कविवर बनारसीदास द्यानतराय, भूधरदास बुधजन, दौलतराम, भागचन्द, रूपचन्द्र, भट्टारक रत्नकीर्ति, भट्टारक कुमुदचन्द्र, जगजीवन, जगतराम, बख्तराम शाह, नवलराम, छत्रपति, पं. महाचन्द आदि प्रमुख हैं। इनमें भूधरदास का अपना एक विशिष्ट स्थान है।