Book Title: Mahakavi Bhudhardas Ek Samalochantmaka Adhyayana
Author(s): Narendra Jain
Publisher: Vitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer
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एक समालोचनात्मक अध्ययन
कवि भूधरदास क्या भाव, क्या भाषा, क्या मुहावरों का प्रयोग, क्या भाषा का प्रवाह, क्या विषय प्रतिपादन की शैली, क्या सूक्तियों एवं कहावतों का प्रयोग- इन सब काव्योचित गुणों में अन्य जैन कवियों से तो आगे बढ़े हुए हैं ही, किंतु हिन्दी के भी कई कवियों में उचित स्थान पाने के अधिकारी हैं । जैनशतक में उनकी इस प्रतिभा का परिचय पूर्णरूप से मिलता है । यद्यपि उन्होंने तत्कालीन प्रचलित कवित्त सवैया छप्पय दोहा आदि छन्दों के प्रयोग की शैली में ही अपने भावों को गूंथा है; किन्तु फिर भी वे अपने भावों को व्यक्त करने में पूर्णतया समर्थ हो सके हैं। कवित्त और सवैये तो बड़े ही सरस, प्रवाहपूर्ण, लोकोक्ति-समाविष्ट एवं महत्वपूर्ण हैं। कुछ विषय जैसे वृद्धावस्था, संसार, देह, भोग-निषेध आदि काफी अच्छे बन पड़े हैं। जिस विषय को वे उठा लेते हैं, जोरदार शब्दों में उसका अन्त तक निर्वाह करते चले जाते हैं। कहीं शिथिलता दृष्टिगोचर नहीं होती है । यद्यपि उन्होंने श्रृंगार, वीर, हास्य आदि रसों पर प्रमुख रूप से अपनी लेखनी नहीं उठाई और जैन परम्परा का निर्वाह करते हुए शान्त रस को ही अपना प्रमुख विषय बनाया तथापि उसमें भी ये एक प्रकार का उत्साह एवं प्रभाव उत्पन्न कर सके हैं। वैराग्य, नैराश्य, संसार की क्षणभंगुरता, काल-प्रभाव आदि भयोत्पादक एवं नीरस विषयों को भी सरस, गम्भीर और सुन्दर बनाने में यह प्रौढ़ कवि समर्थ हो सका है। बीच-बीच में मुहावरों एवं लोकोक्तियों का उचित प्रयोग भी भाषा को प्रभावपूर्ण एवं भावों को विशद बनाने में सहायक हुआ है ।
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भूधरदास कवि कुछ अशों में कबीर के समान अक्खड़ प्रतीत होता है । जो कहना चाहता है कह देता है, छिपाता नहीं, दबाता नहीं, डरता नहीं। उसके जैन शतक में हम काफी उदारता एवं असाम्प्रदायिकता पाते हैं । उसकी कथन करने की शैली भी जोरदार एवं प्रभावपूर्ण है। जो विषय उसे रुचिकर होता है, उस पर धारावाहिक रूप में लिखता जाता है, मानो उसे एक छन्द में संतोष नहीं हो रहा हो । जैनशतक जैसे 107 छंदों वाले छोटे से ग्रंथ में यह अपनी कुशलता, विषय प्रतिपादन शैली और भाषा के प्रवाह का पूर्ण परिचय दे सका है। जैन कवियों में यदि इसे लोकोक्ति और रूपक अलंकारों का कवि कहा जाय तो