Book Title: Mahakavi Bhudhardas Ek Samalochantmaka Adhyayana
Author(s): Narendra Jain
Publisher: Vitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer
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महाकवि भूधरदास : सज्जनों के गुणों को बखान करने की आदत रहे, दूसरों के अवगुण कहने की आदत दूर रहे । सभी से उचित और सुखकारी वचन बोलूँ और हमेशा आत्मिक धन की भावना भाऊँ। हे प्रभो ! मेरे मन की यह सब आशाए पूरी होवें।'
वैदिक कर्मकाण्ड की प्रधानता के कारण यज्ञ में पशुओं की बलि दी जाती थी। वे हवन कुंड में होम दिये जाते थे। एक विशिष्ट वर्ग इसको निरन्तर प्रोत्साहन देता था, तब भूधरदास ने बड़े साहस से इस कार्य का विरोध किया
और पशुओं की ओर से वकालत की। यज्ञों में होमे जाने वाले प्राणियों का प्रतिनिधित्व कवि बड़े ही मार्मिक और करुणापूर्ण शब्दों में इसप्रकार करता है--
कहै पशु दीन सुन यज्ञ के करैया मोहि होमत हुताशन मैं कौन सी बड़ाई है। स्वर्गध * न चहौं “हेतु मुझे." यौं वो , घास खाय रहों मेरे यही मनभाई है। जो तू यह जानत है वेद यौं बखानत है, जग्य जलौ जीव पार्दै स्वर्ग सुखदाई है। द्वारे क्यों न वीर !यामैं अपने कुटम्ब ही को,
मोहि जानि जारे जगदीश की दुहाई है।' इसीप्रकार पशुहिंसा की एक प्रवृत्ति आखेट के समय भी देखी जाती है। आखेटक असहाय भोले भाले प्राणियों का शिकार कर यह समझता है कि वह बड़ी बहादुरी का काम कर रहा है; परन्तु मृगादि दीन-हीन निर्बल पशुओं का वध करने में कौनसी बहादुरी ? भूधरदास निर्दोष प्राणियों को मारने की कठोरता पर खेद व्यक्त करते हैं।'
इसी प्रकार कवि ने जुआ खेलने, मांस खाने, मदिरा पान करने, वेश्यासेवन करने, चोरी करने, परस्त्री सेवन करने आदि का निषेध अति मार्मिक ढंग से किया
1. जैनशतक छन्द 92 3. जैनशतक छन्द 55
2, जैनशतक छन्द 47 4, जैनशतक छन्द 51 से 57 तक