Book Title: Mahakavi Bhudhardas Ek Samalochantmaka Adhyayana
Author(s): Narendra Jain
Publisher: Vitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer
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एक समालोचनात्मक अध्ययन
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आगे के मुक्तकों के पाठ्य और गेय-ऐसे दो भेद बतलाकर कहते हैं कि “प्राय: गेय पदों में भावातिरेक और निजीयन अधिक रहता था; इसलिए निजी भावातिरेक का प्राधान्य इस विधा का मूल तत्त्व हो गया है। संगीत तो प्रगीत काव्य के नाम से लगा हुआ है।
संक्षेप में प्रगीत काव्य के तत्त्व इसप्रकार हैं-- संगीतात्मकता और उसके अनुकूल सरस प्रवाहमयी कोमलकान्त पदावली, निजी रागात्मकता ( जो प्राय: आत्मनिवेदन के रूप में प्रकट होती है ) संक्षिप्तता और भाव की एकत्ता ।
यह काव्य की अन्य विधाओं की अपेक्षा अन्तः प्रेरित होता है और इसी कारण इसमें कला होते हुए भी कृत्रिमता का अभाव रहता है।"
मुक्तक के सम्बन्ध में सम्पूर्ण मतों का विमर्श करके यह परिभाषा बनायी जा सकती है
__ "मुक्तक पूर्व और पर से निरपेक्ष, मार्मिक खण्ड, दृश्य अथवा संवेदना को उपस्थित करने वाली वह रचना है; जिसमें नैरन्तर्यपूर्व कथा-प्रवाह नहीं होता, जिसका प्रभाव सूक्ष्म अधिक व्यापक कम होता है तथा जो स्वयं पूर्ण अर्थभूमि सम्पन्न अपेक्षाकृत लधु रचना होती है । 2
मुक्तक की विशेषताओं के रूप में कहा जा सकता है कि - 1. मुक्तक वह है, जो अन्य निरपेक्ष हो। 2. अनिबद्ध हो ( कथा बन्ध रहित हो) । 3. एक छन्द हो और रस चर्वण ( रसस्वाद ) कराने में सहायक हो
अथवा चमत्कारक्षम हो। पूर्व निरपेक्षता आदि गुण मुक्तक के रूपात्मक पक्ष का पूर्ण निरूपण करते हैं, लेकिन मुक्तक होने के लिए एक छन्द की अनिवार्यता ठीक नहीं।
1. काव्य के रूप - बाबू गुलाबराय, पृष्ठ 108 2, हिन्दी मुक्तक का विकास - जितेन्द्रनाथ पाठक, पृष्ठ 16