Book Title: Mahakavi Bhudhardas Ek Samalochantmaka Adhyayana
Author(s): Narendra Jain
Publisher: Vitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer
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एक समालोचनात्मक अध्ययन
225 पर्वतों से पथिकों के मन को हरने वाले झरने बहने पर भी उनमें शान्त रस की उद्दीपकता का अभाव नहीं हुआ है। शान्त रस के उद्दीपक के रूप में पर्वतों का वर्णन निम्नलिखित है -
"ऊँचे परवत झरना झरें । मारग जात पश्चिक मन हरें ।। जिनमें सदा कन्दराथान। निहचल देह घरै मुनि ध्यान ।।
भूधरदास ने छठवें अधिकार में देवों द्वारा पार्श्वनाथ के जन्मोत्सव मनाने के प्रसंग में जन्माभिषेक का विस्तार से वर्णन किया है। इस वर्णन में मेरू पर्वत का भी विल्समन हुआ है, क्योंकि पापनाथ का जन्माभिषेक मेरू पर्वत पर ही हुआ था। कवि ने मेरू पर्वत के वर्णन के अतिरिक्त जैन भूगोल के अनुसार तीन लोक का वर्णन भी किया है।'
भूधरदास ने जिन उत्प्रेक्षाओं के द्वारा वर्ण्यविषय को सुन्दर बनाया है, वे अधिकांशतः प्रकृति से ली गई हैं। भगवान पार्श्वनाथ के शरीर पर एक हजार आठ लक्षण इस भाँति सुशोभित हो रहे है; जैसे कल्पतरूराज के कुसुम ही विराजे हो -
"सहज अटोत्तर लछन ये, शोभित जिनवर देह । किधौ कल्पतरूराज के, कुसुम विराजत येह ।।"
तीर्थकर पार्श्वनाथ के समवशरण के चारों ओर वलयाकृति खाई बनी है, उसमें निर्मल जल लहरे ले रहा है, वह ऐसा प्रतीत होता है, मानों गंगा प्रदक्षिणा दे रही है -
"वलयाकृति खाई बनी, निर्मल जल लहरेय। किंयौं विमल गंगा नदी, प्रभु परदछना देय ।। 5
1. पार्श्वपुराण- कलकत्ता, अधिकार 5, पृष्ठ 43 2. पार्श्वपुरापा- कलकत्ता, अधिकार 6, पृष्ठ 53 3. पार्श्वपुराण--- कलकत्ता, अधिकार 5, पृष्ठ 41 4. पार्श्वपुराण-कलकत्ता, अधिकार 7, पृष्ठ 60 5. पार्श्वपुराण- कलकत्ता, अधिकार 8, पृष्ठ 71