Book Title: Mahakavi Bhudhardas Ek Samalochantmaka Adhyayana
Author(s): Narendra Jain
Publisher: Vitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer
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महाकवि भूघरदास : रौद्र रस • कमठ का जीव पापकर्मों के फलस्वरूप कई बार नरक में जन्म लेता है। नरक के नारकियों के स्वरूप वर्णन में रौद्र रस दिखलाई देता
सब क्रोधी कलही सकल, सबके नेत्र फुलिंग।
दुख देने को अति निपुन, निठुर नपुसंक लिंग॥' नारकी क्रोधित होकर आपस में एक दूसरे को मारते हैं -
___“तिनही सों अति रिस भरे, करें परस्पर घात । कमठ के ऊपर राजा द्वारा क्रोध करने में भी रौद्र रस प्रकट हुआ है -
"राजा अति ही रिस कीनी, सिर मुण्ड दण्ड बहु दीनी 3 राजा अरविन्द द्वारा कमठ को देश निकाला दिये जाने पर मरूभूति उससे मिलने जाता है । जब मरूभूति उसके पैरों में गिरकर क्षमायाचना करता है तब कमठ क्रोध में आकर अपने हाथ में ली हुई शिला मरूभूति के ऊपर पटक कर उसकी हत्या कर देता है । इस प्रसंग में रौद्र रस देखिये -
“यो कह पायन लागो - जाम। कोप्यो अधिक कमठ दुठ ताम॥ शिला सहोदर शीशपै, डारी वन समान।
पीर न आई पिशुन को, धिक दुर्जन की बान ।।" भयानक रस - मरूभूति मरकर "बघ्घोष" नाम का हाथी होता है। वह हाथी क्रोधित होकर भय का कारण बनता है -
तावत बज्रघोष गजराज, आयो कोपि काल सप गाज। सकल संग में खल बल परी, भाजे लोग कूकि ध्वनि करी। गज के छकै पर्यो जो कोय सो प्राणी पहच्यो परलोय ।
मारे तुरग तिसाये मैल मारे मारगहारे बैल।
पारे भूखे करहा खरे, मारे जन भाजे भय भरे।' नरक के वर्णन में भयानक रस का चित्रण भी हुआ है -
1. पार्श्वपुराण- कलकत्ता, अधिकार 3 पृष्ठ 22 3. वही अधिकार 1, पृष्ठ 7 5. वही अधिकार 2, पृष्ठ 10
2. वही अधिकार 3, पृष्ठ 23 4. वही अधिकार 1, पृष्ठ 8