Book Title: Mahakavi Bhudhardas Ek Samalochantmaka Adhyayana
Author(s): Narendra Jain
Publisher: Vitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer
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परि। भूषण
यो
महाकवि भूधरदास : __ "एक दिना निजमाता नारि। भूषण भूषित रूप निहारि॥
राग अंध अति विहवल भयो। तीच्छन कामताप उर तयो॥ छल बल कर भीतर लई, बनिता गई अजान । राग वचन भाये विविध दुराचार की खान ।। गज मासो कमठ कंलकी। अघसों मनसा नहिं शंकी। भानुज बनकरनी रंजो जिप शीतल रोवर भंजो।'
मरूभूति मरकर दूसरे जन्म में “बज्रघोष" नाम का हाथी होता है और कमठ की स्त्री “वरूना” मरकर हथिनी होती है। हाथी का हथिनी के साथ संयोग श्रृंगार का वर्णन भी हुआ है -
जो वरूना नामैं कमठ नार1 पोदनपुर निवसै तिराधार । सो मरि तिहि हथनीं हुई आन, तिस संग रमै नित रंजमान ॥'
यों सुछन्द क्रीड़ा करे, वरूना हथनी सत्य।
वन निवसै बारण बली, मारणशील समस्य ।। । हास्य रस - बालक पार्श्वनाथ की बालक्रीड़ाओं में वात्सल्ययुक्त हास्य रस अभिव्यक्त हुआ है -
अब जिन बालचन्द्रमा बढ़े। कोमल हाँस किरन मुख कहै।। छिन छिन तात यात मन हरै। सुख समुद्र दिन दिन विस्तरै ।'
पार्श्वकुमार वनविहार करते समय अपने नाना को पंचाग्नि तप के लिए लकड़ी चीरते हुए देखते हैं । उन्हें देखकर वे प्रणाम नहीं करते हैं तथा लकड़ी चीरने के लिए भी मना करते हैं जिससे उनके नाना पार्श्वकमार का मजाक उड़ाते हुए ऐसे वचन बोलते हैं, जिनसे क्रोधव्यंग्ययुक्त हास्य रस उद्भूत होता है -
सुनि कठोर बोल्यो रिस आन, भो बालक तुम ऐसो ज्ञान । हरि हर ब्रह्मा तुम ही भये, सकल चराचर ज्ञाता ठये।"
1. पार्श्वपुराण - कलकत्ता, अधिकार ! पृष्ठ 5 2. पार्श्वपुराण-कलकत्ता, अधिकार 1 पृष्ठ 6 3. पार्श्वपुराण-कलकत्ता, अधिकार 2 पृष्ठ " 4. पावपुराण-कलकत्ता, अधिकार 2 पृष्ठ 9 5. पार्श्वपुराण-कलकत्ता, अधिकार 4 पृष्ठ 28 6. पार्श्वपुराण- कलकत्ता, अधिकार 7 पृष्ठ 61