Book Title: Mahakavi Bhudhardas Ek Samalochantmaka Adhyayana
Author(s): Narendra Jain
Publisher: Vitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer
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एक समालोचनात्मक अध्ययन
33 करुण रस - राजा अरविन्द द्वारा दुराचारी कमठ को दण्ड दिये जाने पर कमठ अत्यन्त दुःखी होता है । दुःखावस्था में करूण रस का चित्रण निम्नप्रकार हुआ है -
महादण्ड जब भूपति दियो, कमठ कुशील दुखी अति भयो । विलखत वदन गयो चल तहाँ, भूताचल पर्वत है जहाँ ॥'
कमठ द्वारा अनेक पाप किये जाने पर वह नरक गति प्राप्त कर लेता है। नरक में वह पूर्व में किये गये पापों के प्रति पश्चाताप करता है। पश्चाताप करते हुए करुण रस इस प्रकार व्यक्त हुआ है -
पूरब पाए कलाप सब, आय जाय कर लेय। तन्त्र विलाप की ताप शाम, माना होगा । मैं मनुष्य परजाय धरि, धन जोबन मदलीन । अधम काज ऐसे किये, नरक वास जिन दीन ।। सरसों सम सुख हेत तर भयो लम्पटी जान। ताही को अब फल लग्यो, यह दुख पेरू समान ॥'
पार्श्वकुमार द्वारा शादी का प्रस्ताव अस्वीकार किये जाने पर राजा अश्वसेन अत्यन्त दुःखी होते हैं । इस प्रसंग में करुण रस द्रष्टव्य है -
सुन नरेन्द्र लोचन भरे, रहे वदन विलखाय।। पुत्र व्याह वर्जन वचन, किसे नही दुखदाय॥
वीर रस - पार्श्वनाथ तप में निरत रहकर ध्यानरूपी तलवार से कर्मरूपी शत्रुओं को जीत लेते हैं। इस प्रसंग में वीर रस की छटा देखिये -
तपमय धनुष धर्यो निज पान । तीन रतन ये तीखन बान॥ समता भाव चढ़े जगशीश। ध्यान कृपान लियो कर ईश ॥
चारित रंग मही में धीर । कर्मशत्रु विजयी घरवीर ॥ 1. पार्श्वपुराण- कलकत्ता, अधिकार 1 पृष्ठ 7 2. पार्दपुराण- कलकत्ता, अधिकार 3 पृष्ठ 21 3. पार्श्वपुराण- कलकत्ता, अधिकार 7 पृष्ठ 61 4. पार्श्वपुराण- कलकत्ता, अधिकार 8 पृष्ठ 67