Book Title: Mahakavi Bhudhardas Ek Samalochantmaka Adhyayana
Author(s): Narendra Jain
Publisher: Vitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer
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महाकवि भूधरदास : भूधरदास ने “पार्श्वपुराण' में ऋतुवर्णन भी किया है; परन्तु यह वर्णन अपनी विशेषता लिये हुए है। प्रकृति जैन साधुओं के आगमन पर हर्ष प्रकट करती है। जब भगवान महावीर संघ सहित विपुलाचल पर आते हैं तब वहाँ की प्रकृति छह ऋतुओं के पन्न- पूल से शुषः से जाती है । इसाल उन सब फल-फूलों को राजा श्रेणिक के सम्मुख लाकर रखता है, जिससे उन्हें भगवान महावीर के आगमन का विश्वास हो जाये -
“रोमांचित वनपालक ताम। आय राय प्रति कियो प्रनाम । छह ऋतु के फल फूल अनूप। आगे धरे अनुपम रूप ॥"
जैन मुनि प्राय: नदी एवं सरोवर के किनारे, पर्वतों के ऊपर तथा भयानक वनों में तप करते हैं। प्रकृति भिन्न भिन्न ऋतुओं के माध्यम से अपना रोष दिखाती है, परन्तु वे धीर फिर भी विचलित होकर अपनी तपस्या नहीं छोड़ते ' हैं । भूधरदास ने इसी प्रसंग में शीत, वर्षा और ग्रीष्म ऋतु का वर्णन निम्नप्रकार से किया है -
"शीतकाल सब ही जन काँपै, खड़े जहाँ वन विरछ डहे हैं। झंझा वायु बहै वरषा ऋतु, बरसत बादल झूम रहे हैं ।। तहाँ धीर तटनी तट चौबद, ताल पाल पै कर्म दहै है। सह सम्भाल शीत की बाया, ते मुनि तारन तरन कहे हैं। भूख प्यास पीड़े उर अन्तर, प्रजलै आँत देह सब दाहै। अग्नि सरूप धूप ग्रीषम की, ताती बाल झालसी लागै॥ तपै पहार ताप तन उपजे, कोपै फ्ति दाहधर जागै। इत्यादिक ग्रीषम की बाथा, सहै साधु धीरज नहि त्याग 1 2
पार्श्वपुराण का नायक “पार्श्वनाथ” अपने शुभकर्मों से कई जन्मों में स्वर्गलोक प्राप्त करता है तथा प्रतिनायक कमठ अपने पापकर्मों से कई बार नरक में उत्पन्न होता है । अत: कवि ने स्वर्गलोक और नरक लोक का भी वर्णन किया है। इस वर्णन में भी प्रकृति चित्रण का पुट दिखलाई देता है । स्वर्ग लोक के वर्णन में प्राकृतिक छटा दृष्टव्य है - 1. पार्श्वपुराण पीठिका पृष्ठ 3 2. वही अध्याय 4 पृष्ठ 32