Book Title: Mahakavi Bhudhardas Ek Samalochantmaka Adhyayana
Author(s): Narendra Jain
Publisher: Vitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer
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एक समालोचनात्मक अध्ययन
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"संवर” नाम का ज्योतिषी देव बन जाता है । जब वह आकाशमार्ग से जा रहा था, तब जहाँ पार्श्वनाथ आत्मध्या में लीन थे, वहीं उसका समान रुक जाता है, जिससे पूर्व वैर का स्मरण कर क्रोधित होकर वह पार्श्वनाथ पर विक्रिया बल द्वारा अनेक उपसर्ग करता है -
"संवर नाम ज्योतिषी देव । पूरव कथित कमठचर एव ।। अटक्यो अंबर जात विमान। प्रभु पर रह्यो छत्रवत आन ।। ततखिन अवधिज्ञान बल तबै। पूरब बैर संभालो सबै ।" "दुष्ट विक्रिया बल अविवेक । और उपद्रव करै अनेक ॥2
देव के द्वारा उपसर्ग करने पर भी जब पार्श्वनाथ को आत्मध्यान की एकाग्रता के कारण केवलज्ञान हो जाता है तथा इन्द्रादि उनका ज्ञान कल्याणक मनाने आते हैं, तब उसे अपनी करनी पर बहुत पश्चाताप होता है। वह भगवान पार्श्वनाथ की दिव्यध्वनि को सुनकर वैरभाव तथा मिथ्यात्व का त्याग कर सम्यग्दर्शन, ज्ञा-चारित्र की प्राप्ति कर सन्मार्ग में लग जाता है ।
"कमठ जीव सुन जोतिषी, करि वचनामृत पान । वौं बैर मिथ्यात्व विष, नमो चरण जुग आन । "दई तीन परदक्षिणा, प्रणमें पारसदेव ।
स्वामी चरण संयम धरो, निंदी पूरव देव ॥" कमठ जन्म से कामी, क्रोधी, दुराचारी, क्रूर स्वभाव को लिए हुए सर्प, अजगर, भील, नारकी आदि अनेक जन्मों में तथा कुयोनियों में दुःख भोगता है। मरुभूमि प्रत्येक जन्म में क्षमाधारी दृष्टिगत होता है, जबकि कमठ प्रत्येक जन्म में वैर की ज्वाला में जलता हुआ मरूभूति से बदला लेता रहता है। पार्श्वनाथ के जनम में भी वह वैर का स्मरण कर पार्श्वनाथ पर अनेक उपसर्ग करता है और उन्हें आत्मध्यान से डिगाने की पूरी चेष्टा करता है। यद्यपि वह एक-दो जन्मों में धर्म के साधनों में तत्पर होता हुआ दिखाई देता है, जैसे कमठ के जन्म में तापसी साधु होकर तप करना तथा पार्श्वनाथ के नाना के जन्म में पंचाग्नि
1. पार्यपुराण- कलकत्ता, अधिकार 3, पृष्ठ 19 2. वही, अधिकार 9, पृष्ठ 91
2. वही, अधिकार 8, पृष्ठ 68 4. वही, अधिकार 9, पृष्ठ 91