Book Title: Mahakavi Bhudhardas Ek Samalochantmaka Adhyayana
Author(s): Narendra Jain
Publisher: Vitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer
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एक समालोचनात्मक अध्ययन
उद्दीपन के अन्तर्गत प्रकृति का वर्णन कई प्रकार से किया गया है। जैसे उपसर्ग के रूप में, विरह के रूप में, शान्त रस के उद्दीपन के रूप में इत्यादि । उपसर्ग के रूप में प्रकृति का वर्णन करते समय कवि ने अनेक प्राकृतिक तत्त्वों -पत्थर, सर्प, शर, नख-दाढ़, गर्जन-तर्जन, पुंकार, अंधकार, मूसलाधार वर्षा, बिजली, झंझा आदि का उल्लेख किया है तथा इन सबको मानवीय भावनाओं की प्रतिकूलता को उद्दीप्त करने का साधन निरूपत किया है। इसी प्रकार नेमि-राजुल के विरहपरक पदों में विरह को उद्दीप्त करने वाले प्राकृतिक तत्त्वों का प्रयोग किया गया है । शान्त रस के उद्दीपन के लिए नदी, सरोवर, पर्वत आदि का वर्णन शान्तरस को उद्दीप्त करने वाले प्राकृतिक तत्त्वों के रूप में किया है।
___ नगर आदि का वर्णन करते समय कवि ने कई उपमाएँ एवं उत्प्रेक्षाएँ प्रकृति से ली हैं। इन उपमाओं और उत्प्रेक्षाओं के कारण प्रकृतिवर्णन अलंकार रूप में भी बन पड़ा है। जैन मुनियों द्वारा विशेष तपस्या करने (22 परीषहों को) सहने तथा शीत, ग्रीष्म व वर्षा - इन तीनों ऋतुओं के कष्टों को सहने के सन्दर्भ में ऋतुओं का आलम्बन, उद्दीपन के लगभग सभी रूपों का वर्णन हुआ है।
कवि ने प्रकृति से बहुत कुछ सीखा है। उसने गृहस्थ होकर पी वैरागी जीवन से प्रेरणा प्राप्त की है, इसीलिए मुनिराजों के अनेक कष्टों तथा सभी ऋतुओं के स्वाभाविक कष्टों का अत्यन्त सजीव चित्रण किया गया है। नगर, वन आदि के वर्णन में कवि प्रकृति के छोटे से छोटे तत्त्व को भी नहीं भूला है। इससे कवि के प्रकृति के अतिनिकट होने का पता चलता है। स्वर्ग आदि के वर्णन में जहाँ एक ओर प्रकृति के रम्य और सौम्यरूप के दर्शन होते हैं, वहीं दूसरी ओर नरक आदि के वर्णन में प्रकृति के वीभत्स एवं रौद्ररूपों का अंकन भी हुआ है। नीति और धर्म का कथन करने के लिए कई स्थानों पर प्रकृति का आलम्बन रूप में प्रयोग किया है तथा कई स्थानों पर मानवीय भावनाओं को उद्दीप्त करने के लिए उद्दीपनरूप में प्रयोग किया है। आलम्बन और उद्दीपन के अन्तर्गत आने वाले प्रकृति के समस्त रूपों का प्रयोग प्राय: शान्तरस का पोषक रहा है।
शान्तरस पोषक प्रकृतिचित्रण रचनाकार का उद्देश्यगर्मित कविधर्म है। शान्तरसपूर्ण जिस धार्मिक उद्देश्य की प्राप्ति के लिए कवि काव्य रचना में प्रवृत्त