Book Title: Mahakavi Bhudhardas Ek Samalochantmaka Adhyayana
Author(s): Narendra Jain
Publisher: Vitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer
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महाकवि भूधरदास :
"जेठो नंदन कमठ कुपूत । दूजौ पुत्र सुधी मरूभूत ।। जेठो मतिहेतो कुटिल, लघुसत सरल स्वभाव।
विष अमृत उपजे जुगल, विन जलधि के जाव ।'
अपनी अति सज्जनता, नीति-निपुणता एवं सब गुणों से युक्तता के कारण मरूभूति राजा और प्रजा सबको इष्ट था। सब उसे बहुत चाहते थे। 'कमठ द्वारा मरूभूति की पत्नी के साथ दुराचार कर लेने पर भी मरूभूति राजा से कमठ को क्षमा करने की बात कहता है -
दुज कहै सरल परिनामी । अपराध छिमा कर स्वामी ।' राजा द्वारा कमठ को अपमानित कर देश निकाला दिये जाने पर मना करने के बावजूद भी मरूभूति कमठ से मिलने भूताचल पर्वत पर चला जाता है, बदले में चाहे उसे मृत्यु का वरण ही क्यों न करना पड़ा हो ?
"बरजत गयो दुष्ट के पास, कुमरण सो सहो बहु त्रास ॥' इस प्रकार मरूभूति के जन्म में पार्श्वनाथ क्षमा और उदारता को मरण प्राप्त होने पर भी नहीं छोड़ते हैं।
दूसरे जन्म में आर्तध्यान के कारण यद्यपि वे हाथी बनते हैं तथापि मुनि राज के धर्मोपदेश से सम्यग्दर्शन सहित संयम का पालन करते हुए उसकाय के जीवों की हिंसा नहीं करते तथा समता भाव धारण करते हैं
"अब हस्ती संजम साधे। त्रस जीव न भूल विराधै ॥
समभाव छिमा उर आने। अरि मित्र बराबर जाने ।' तीसरे जन्म में वे स्वर्ग में देव बनते हैं। देवोचित अद्भुत ऐश्वर्ययुक्त होकर भी वे पूजादि शुभकार्यों में संलग्न रहते हैं -
"सदा सासते श्री जिनधाम, पूजा करी तहाँ अभिराम ।
महामेरू नन्दीसुर आदि पूजे सह जिनबिम्ब अनादि ॥" 1. पार्श्वपुराण- कलकत्ता, अधिकार 1, पृष्ठ 5 2. पार्श्वपुराण- कलकत्ता, अधिकार 1, पृष्ठ 5 3. पावपुराण- कलकत्ता, अधिकार 1, पृष्ठ 6 4, पार्श्व पुराण- कलकत्ता, अधिकार 1, पृष्ठ 8 5. पार्श्वपुराण- कलकत्ता, अधिकार 2, पृष्ठ 11 6. पार्श्वपुराण- कलकत्ता, अधिकार 2, पृष्ठ 11