Book Title: Mahakavi Bhudhardas Ek Samalochantmaka Adhyayana
Author(s): Narendra Jain
Publisher: Vitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer
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महाकवि भूधरदास :
कवि द्वारा परम्परागत वर्णन के रूप में पूर्व के नौ जन्मों का विस्तृत विवेचन तथा वर्तमान जन्म में तीर्थंकर पार्श्वनाथ के गर्भ में आने के छह माह पूर्व से जन्म होने तक रत्नों की वर्षा होना, गर्भ में आने के समय माता को सोलह स्वप्न दिखना, रुचिकवासिनी देवियों द्वारा माता की सेवा करना, जन्म होने पर दस अतिशय होना तीर्थकर के शरीर का एक हजार आठ लक्षणों सहित होना, देवों द्वारा गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण - पंचकल्याणक मनाये जाना, केवलज्ञान होने पर दस अतिशय होना, देवकृत चौदह अतिशय होना, आठ प्रातिहार्य होना इत्यादि सभी का वर्णन किया गया है।
मौलिक या नवीन उद्भावनाओं के रूप में कवि ने पूर्वभवावलियों (पूर्व जन्मा) के चित्रण द्वारा कथा की रोचकता, आत्मोत्थान और आत्मपतन की पराकाष्ठा, तथा आत्मविश्वास की अनेक भूमियों का कथन किया है।
पुण्य और पाप के फलस्वरूप प्राप्त होने वाले स्वर्ग व नरक का विस्तृत विवेचन, कथानक में शान्तरस की प्रमुखता और धर्मभावना की अधिकता, जैनधर्म एवं दर्शन के प्रमुख विषयों व तत्त्वों के वर्णन की बहुलता लोकोक्तियों एवं मुहावरों के प्रयोग द्वारा नीति और व्यवहार के कथनों का समावेश, चरित्र चित्रण में अतिमानवीय (इन्द्र, इन्द्राणी, देव, देवियां का कथन) तथा मानवीय पात्रों का वर्णन मानवीय पात्रों में उत्तम (पार्श्वनाथ) मध्यम (अनेक राजपुरुष) और जघन्य (कमठ का जीव) पात्रों के चरित्रों का वर्णन, नायक पार्श्वनाथ के चरित्र के माध्यम से भक्ति भावना की अभिव्यक्ति तथा भक्तिभावना के द्वारा धार्मिक एवं आध्यात्मिक भावना की पुष्टि, संसार, शरीर एवं भोगों से विरक्ति एवं नैतिक मूल्यों आदि अनेक विषयों पर बल देते हुए सार्वकालिक सार्वभौमिक एवं सार्वजनिक आदर्शों की प्रेरणा, रसनिरूपण द्वारा रति, वात्सल्य, निवेद, क्रोध, घृणा आदि सभी मानवीय भावों का वर्णन, प्रकृति चित्रण के अन्तर्गत मुनिराज द्वारा बावीस परीषहों को सहन करने अर्थात् उन पर विजय प्राप्त करने के सन्दर्भ में प्रकृति या प्राकृतिक तत्त्वों का विशिष्ट वर्णन एवं शान्तरस को उद्दीप्त करने वाले अनेक प्राकृतिक दृश्यों या रूपों का वर्णन, सम्पूर्ण भावों, विचारों, कथ्यों या वर्ण्य-विषयों की प्रचलित एवं साहित्य की भाषा (बजभाषा) में अभिव्यक्ति,