Book Title: Mahakavi Bhudhardas Ek Samalochantmaka Adhyayana
Author(s): Narendra Jain
Publisher: Vitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer
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एक समालोचनात्मक अध्ययन
161 रस की रचना करने वाले कवियों की निन्दा की है। 67 वें पद्य में मनरूपी हाथी को वश में करने तथा 68 वें पद्य में श्रीगुरु के उपकार का वर्णन किया गया है।
शेष पद्मों में क्रमश: कषाय जीतने का उपाय, मिष्टवचन, विपत्ति में धैर्य-धारणोपदेश, होनहार दुर्निवार, काल की सामर्थ्य, धन के सम्बन्ध में निश्चित रहने का उपदेश, आशारूपी नदी, महामूढ़ता, दुष्ट के प्रति कथन, चन्द्रप्रभु, शान्तिनाथ, नेमिनाथ, पार्श्वनाथ तथा राजा यशोधर के पूर्व भव, सुबुद्धि सखी के प्रति वचन, गुजराती भाषा में आत्महित की शिक्षा, द्रव्यलिंगी मुनि को मोक्ष प्राप्ति का निषेध, आत्मानुभव की प्रशंसा, भगवान से प्रार्थना, जिनधर्म की प्रशंसा, कवि का परिचय तथा ग्रंथ समाप्ति के समय का उल्लेख आदि अनेक विषयों का निरूपण किया है।
पं. श्री नाथूराम प्रेमी के अनुसार यह एक सुभाषित संग्रह है। श्री कामताप्रसाद जैन ने इसे नीति विषयक अनूठी कृति बतलाया है। इसकी रचना कवि ने गुलाबचन्द तथा हरिसिंह शाह के वंशज धर्मानुरागी पुरुषों के कहने से की है। कवि ने उन लोगों की प्रेरणा से अपने आलस्य का अन्त मानते हए उनका आभार माना है।'
जैन शतक का रचनाकाल वि.सं. 1781 है । कवि ने स्वयं जैन शतक के समाप्त होने के समय का उल्लेख निम्नलिखित पंक्तियों में किया है -
सतरह से इक्यासिया पोह पाखतम लीन। तिथि तेरस रविवार को, “शतक" समापत कीन ।
पदसंग्रह या भूधरविलास (मुक्तक काव्य) :- प्राय: भूधरदास के पद यत्र तत्र बिखरे हुये हैं। विभिन्न धार्मिक व्यक्तियों एवं संस्थाओं द्वारा विभिन्न पद विभिन्न नामों से संग्रहीत कर प्रकाशित कर दिये गये हैं। इसी कड़ी में एक *पदसंग्रह" बहुत ही पहले प्रकाशित हो चुका है। इसमें 80 पद तथा विनतियाँ आदि है। इनका विषय जिनदेव, जिनवाणी, जिनगुरु, जिनधर्म
1. हिन्दी साहित्य का इतिहास, जैन हितैषी भाग 13 अंक 1 - पं. नाथूराम प्रेमी 2. हिन्दी साहित्य का संक्षिप्त इतिहास - बाबू कामताप्रसाद जैन - पृष्ठ 104 3. जैन शतक - भूघरदास, पद्य 106 4. जैन शतक - भूधरदास, पद्य 107 5. जैन पद संग्रह, तृतीय भाग- भूधरदास, प्रकाशक जैन ग्रन्थ रत्नाकर, बम्बई वि.सं. 1983