Book Title: Mahakavi Bhudhardas Ek Samalochantmaka Adhyayana
Author(s): Narendra Jain
Publisher: Vitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer
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एक समालोचनात्मक अध्ययन
लोचन अंजन दियो अनूप । लहजस्वामि दुग अंजित रूप ॥ मनिकुण्डल कानन विस्तरे कियो बंद सूरज अवतरे ॥' यह इन्द्राणी द्वारा बालक पार्श्वनाथ को अलंकृत करने का दृश्य है । पार्श्वकुमार राजपुत्र है और राजपुत्र का बहुमूल्य आभूषणों से सजाया जाना अस्वाभाविक नहीं है । यद्यपि यहाँ इन्द्राणी की उपस्थिति के कारण अलौकिकता का समावेश हुआ है, फिर भी अवतार आदि (तीर्थंकर आदि) सेवा में अलौकिक शक्तियों की उपस्थिति जनविश्वास के अनुकूल है । अतः उक्त दृश्य वर्णन, कथा योजना, प्रबन्धनिर्वाह, स्थान, काल, परिस्थिति आदि का पूर्ण सामंजस्य लिए हुए हैं। इसी प्रकार प्रत्यक्ष न दिखने के कारण स्वर्ग-नरक के दृश्य काल्पनिक हैं किन्तु लोकविश्वास के अनुसार स्वर्ग सुखमय उपादानों का एवं नरक वेदना, कष्ट और घृणा के उपादानों का समूह होता है। ये वर्णन विस्तृत होते हुए भी रस के स्रोत हैं। 2
गजरूप चेष्टाओं एवं क्रीड़ाओं का दृश्य चित्रोपम और स्थानीय विशेषताओं से युक्त होने के कारण बहुत ही सरस बन पड़ा है -
अति उन्नत मस्तक शिखर जास, मदजीवन झरना झरहिं तास ।। दीसैं तमवरन विशाल देह मानो गिरिजंगम दुरस येह । जाको तन नरख शिख छोभवन्त, मसुलोपय दीरथ धक्लदन्त ॥ मदभीजे झलकें जुगल गण्ड, छिन छिनसों फेरै सुंड दण्ड || कबही बहु खंडै बिरछबेलि, कबही रजरंजित करहिं केलि ॥
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बही सरवरमें तिरहिं जाय, कबही जल छिरकै मत्तकाय ।। कबही मुखपकंज तोरि देय, कबहीदह कादो अंग लेय ॥ इसी प्रकार वनवर्णन भी संक्षिप्त किन्तु सरस हैं -
अति सघन सल्लकी वन विशाल जहँ तरूवर तुंग तमाल ताल । बहु बेलजाल छाये निकुंज, कहिं सूखि परे तिन पत्रपुंज ॥
1. पार्श्वपुराण – कलकत्ता, अधिकार 6 पृष्ठ 55
2. (क) पार्श्वपुराण
(ख) पार्श्वपुराण 3 एवं 4. पार्श्वपुराण
• कलकत्ता, अधिकार 4 पृष्ठ 37-38
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- कलकत्ता, अधिकार 3 पृष्ठ 22 से 24 कलकत्ता, अधिकार 2 पृष्ठ 9