Book Title: Mahakavi Bhudhardas Ek Samalochantmaka Adhyayana
Author(s): Narendra Jain
Publisher: Vitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer
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महाकवि भूधरदास
में
पृथक् प्रकाशन भी उपलब्ध है। यहाँ तक कि सोनागिरि सिद्धक्षेत्र के चन्द्रप्रभु जिनालय में इसे चित्र सहित टंकोत्कीर्ण भी किया गया है। इसमें आत्म साधना में संलग्न साधु जिन परीषहों को जीतते हैं, उनका स्वरूप बताते हुए साधु की स्तुति भी की गई है। इन परीषहों के लक्षण क्या हैं ? अमुक परीषह के काल साधु की क्या स्थिति होती है ? संसारी जीवों की ऐसे कष्ट आने पर क्या दशा होती है ? इन सबका इसमें विशद् वर्णन मिलता है। इसका कलापक्ष की अपेक्षा भावपक्ष अति प्रभावोत्पादक एवं हृदयग्राही है। जहाँ एक ओर “छप्पय” छन्द में 22 परीषह का नाम परिगणन हुआ है, वहाँ दूसरी ओर “सोमावती” छन्द में इनका वर्णन हुआ है। इस रचना का भावनाजन्य आचरण प्रधानता की दृष्टि से अति महत्वपूर्ण स्थान है ।
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कवि द्वारा रचित उपर्युक्त सभी फुटकर रचनाएँ मुक्तक काव्य के अन्तर्गत ही आती हैं ।
इस तरह भूधरदास की प्रमुख रचनाएँ गद्य में " चर्चा समाधान" पद्म में महाकाव्य के रूप में " पार्श्वपुराण" जैनशतक एवं पदसंग्रह या भूधरविलास तथा अनेक फुटकर रचनाएँ मुक्तक काव्य के रूप में प्रसिद्ध है ।
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