Book Title: Mahakavi Bhudhardas Ek Samalochantmaka Adhyayana
Author(s): Narendra Jain
Publisher: Vitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer
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महाकवि भूधरदास
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घटना विधान और दृश्य योजना को भी इसमें पूर्ण विस्तार प्राप्त है कवि ने काव्य के नायक पार्श्वनाथ के चरित्र निरूपण के साथ कुछ दार्शनिक सिद्धान्तों का भी निरूपण किया है। इस ग्रन्थ में सफल महाकाव्य के प्रायः सभी गुण विद्यमान हैं।
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महाकाव्य का स्वरूप : विभिन्न विद्वानों की दृष्टि में. महाकाव्य के बारे में भारतीय और पाश्चात्य विद्वानों ने अपने-अपने मत प्रस्तुत किये हैं । सर्वप्रथम भारतीय विद्वानों के मत प्रस्तुत हैं
संस्कृत के लक्षण गन्थों में महाकाव्य का स्वरूप :
संस्कृत के लक्षण ग्रन्थों में महाकाव्य के अंगों का विस्तृत विवेचन किया गया है । संस्कृत आचार्यों में महाकाव्य के स्वरूप की सर्वप्रथम विस्तृत व्याख्या करने का श्रेय आचार्य भामह को है। उन्होंने अपने ग्रन्थ "काव्यालंकार" में महाकाव्य के लक्षण इस प्रकार बतलाए हैं :
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1,
महाकाव्य में कई सर्ग होना चाहिये।
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7.
8.
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इसमें उदात्त चरित्र वाले किसी महापुरुष का नायक के रूप में वर्णन होना चाहिए।
कथानक का उपयुक्त संगठन होना चाहिये ।
सांस्कृतिक सम्बद्धता होना चाहिये । '
दण्डी के अनुसार
"1.
महाकाव्य की कथा अनेक सर्गों में हो ।
2. महाकाव्य का प्रारम्भ आशीर्वाद, नमस्कार या वस्तुनिर्देश द्वारा हो । कथा ऐतिहासिक या अन्य कोई उत्कृष्ट होनी चाहिए ।
3.
1. भामह : काव्यालंकार
1, 19-23
किसी महत् कार्य का वर्णन होना चाहिए।
श्लिष्ट एवं नागरप्रयोग तथा अलंकार की योजना रहनी चाहिए । जीवन के विविध रूपों की झाकियाँ प्रस्तुत की जानी चाहिए।
पंच संधियों की योजना होना चाहिये ।
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