Book Title: Mahakavi Bhudhardas Ek Samalochantmaka Adhyayana
Author(s): Narendra Jain
Publisher: Vitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer
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महाकवि भूधरदास :
6. गीत :- भूधरदास द्वारा रचित रिषभदेव के दस भौ ठाने का गीत, दया दिठावन गीत एवं परमार्थ सिष्या गीत - ये तीन गीत प्रकीर्ण रूप में उपलब्ध हुए हैं। गीत से तात्पर्य गान, गाना, ध्रुवपद, तराना आदि है । यह नियमित स्वर निष्पन्न शब्द विशेष है। संगीतशास्त्र के अनुसार धातु तथा मात्रा पद युक्त को गीत कहते हैं । भूधरदास रचित "रिषभदेव के दस भौ ठाने का गीत” में ऋषभदेव के 9 पूर्वभवों के अन्तर्गत विभिन्न जन्मों से निर्माण प्राप्ति तक का वर्णन है । "दया दिठावन गीत" में दया की महत्ता एवं अनिवार्यता बतलाते हुए अहिंसा सिद्धान्त का पोषण किया गया है । “परमार्थ सिष्या गीत" में जीव की संसार अवस्था का वर्णन एवं उसके कर्तव्य-अकर्तव्य का बोध दिया गया है। इन गीतों में कवि द्वारा क्रमशः भक्ति, अहिंसा एवं वैराग्य भावों का सम्यक् परिचय प्राप्त होता है।
7. तीन चौबीसी की जयमाला :- भूधरदास द्वारा रचित भूत, वर्तमान एवं भविष्य - इन तीनों कालों के 24-24 तीर्थंकरों का विवरण एवं उनका जयगान “तीन चौबीसी की जयमाला" नामक कृति में हुआ है। यह कृति अप्रकाशित रूप से उपलब्ध है। पूजाओं की जयमाला लिखने की परम्परा जैन पूजा लेखकों की अपनी परम्परा है। इस परम्परा का अनुसरण करते हुए भक्त कवि अपने इष्ट के प्रति भावपूजा सम्पादित करता है। भूधरदास ने भी इस परम्परा का सम्यक् निर्वाह करते हुए तीन चौबीसी के 72 तीर्थंकरों के प्रति भक्ति भाव प्रदर्शित किया है।
8. विवाह समै जैन की मंगल भाषा :- यह 30 दोहों में लिखी हुई कवि की अनुष्ठानपरक अप्रकाशित कृति है । इसमें विवाह संस्कार का आद्योपान्त वर्णन किया है। विवाह के लिए पिता का पुत्र से पूछना, कन्या का गोत्र, पिता, सौन्दर्य आदि की चर्चा करना, शुभ मुहूर्त में विवाह की लग्न निश्चित करना, बारात में हाथी घोड़े, रथ आदि विविध वाहनों का जाना, विविध मांगलिक वाद्यों का बजना, नर-नारियों का बारात देखना, कन्या के पिता का बारात की अगवानी
1. राजस्थानी प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान, शाखा बीकानेर के गुटका सं. 6766 पृष्ठ 38 2. वही पत्र संख्या 83 3.(क) प्रकाशित - जैन पद संग्रह एवं पार्श्वपुराण के अन्तर्गत (ख) अप्रकाशित राजस्थानी प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान, शाखा बीकानेर
के गुटका सं. 6766 पत्र संख्या 50