Book Title: Mahakavi Bhudhardas Ek Samalochantmaka Adhyayana
Author(s): Narendra Jain
Publisher: Vitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer
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महाकवि भूषरदास :
शतक की परम्परा के अनुसार शतक काव्य में एक ही विषय पर एक ही जाति के 100 या उससे अधिक छन्द होना चाहिए। परन्तु भूधरदास के जैन शतक में ऐसा नहीं है अत: उसे शतक काव्य न मानकर प्रघट्टक काव्य मानना चाहिए । फिर भी कवि के विषय एवं वर्णन के अनुसार “जैन शतक" शतक परम्परा की महत्वपूर्ण कृति है; क्योंकि उसमें जैन धर्म और उससे संबंधित स्तुति, नीति, उपदेश एवं वैराग्य आदि का सुन्दर वर्णन किया गया है। इसमें दिए गए छन्द के अनुसार विषय का परिचय निम्नानुसार है--
प्रथम छन्द में आदिनाथ स्तुति फिर क्रमश: चन्द्रप्रभु, शांतिनाथ, नेमिनाथ, पार्श्वनाथ, महावीर, सिद्ध, साधु और जिनवाणी की स्तुति की गई है । इसप्रकार 15 छन्द मंगलाचरण के रूप में लिखे गये प्रतीत होते हैं।
16 वें छन्द में जिनवाणी और मिथ्यावाणी में अन्तर बतलाया गया है । 17 वें छन्द से 42 वें छन्द तक क्रमश: वैराग्यकामना, राग और वैराग्य दशा में अन्तर, भोग की चाह का निषेध, देह का स्वरूप, संसार का स्वरूप, समय की बहुमूल्यता, विषय-सुख की तुच्छता, हितोपदेश की शिक्षा, बुढ़ापा एवं रोग आने के पहले आत्महित करने की प्रेरणा, सौ वर्ष की आयु का लेखाजोखा, बाल युवा-वृद्धावस्था व्यतीत करने का स्वरूप, मनुष्यदेह की दुर्लभता, युवावस्था में धर्म करने की सलाह, बुढ़ापे का वर्णन, संसारी जीव का धनप्राप्ति विषयक चिन्तन, अभिमान का निषेध, संयोग के वियोग होने पर भी विरक्त न होना, जिनवचन की विशेषता तथा सांसारिक कुशलता का वर्णन किया है । 43 छन्द्र में यौवन समय को विषय सेवन में न खोकर ज्ञान प्राप्त करने में लगाने की प्रेरणा दी है। 44 से 46 वें छन्द तक सच्चे देव, गुरु, धर्म और शास्त्र के लक्षण बताकर उन्हीं में प्रीति करने की प्रेरणा दी है। 47 वें छन्द में पशु बलि का निषेध, 48वें एवं 49 वें छन्द में सात वार (सप्ताह के दिन ) के माध्यम से षट्कर्म (श्रावक के षटावश्यक) करने का एवं सप्त व्यसन को छोड़ने का उपदेश दिया है। 50 से 63 वें छन्द तक सप्त व्यसन का विशेष वर्णन करके उनका फल बताते हुए उन्हें त्यागने की सलाह दी है । 64 से 66 वें पद्य में श्रृंगार
1. हिन्दी साहित्य कोश भाग 1, पृष्ठ 651, द्वितीय संस्करण , काशी 2. एक कविकृत श्लोक समूह या मुक्तक समुच्चय (कोश) का नाम प्रघट्टक है हिन्दी साहित्य कोश, भाग 1, पृष्ठ 275