Book Title: Mahakavi Bhudhardas Ek Samalochantmaka Adhyayana
Author(s): Narendra Jain
Publisher: Vitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer
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एक समालोचनात्मक अध्ययन
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की मृत्यु हो गयी – इस सम्बन्ध में कोई निश्चित तथ्य नहीं मिलते हैं । उपर्युक्त मनीषी विद्वानों ने भूधरदास की गद्यकृति “ चर्चा समाधान" के रचना काल वि. सं. 1806 को ही उनका अन्तिम समय मान लिया है, जबकि इस सम्बन्ध में और भी अधिक गवेषणा की आवश्यकता है। ब्र. रायमलजी टोडरमलजी से सर्वप्रथम वि. सं. 1812 में सिंघाणा में मिले थे, जबकि वह उनसे मिलने के उत्सुक 3-4 वर्ष पहले से ही थे; क्योंकि उस समय तक वे उनकी कीर्ति एवं विद्वता सुन चुके थे। वि. सं. 1812 के पहले ब्र. रायमल टोडरमलजी से मिलने जयपुर गये थे, परन्तु वहाँ टोडरमलजी के न मिलने पर वे आगरा गये थे और आगरा में भूधरदास से मिले थे। उनके आगरा जाने एवं भूधरदास से मिलने का समय निश्चित ही वि. सं. 1812 से कुछ पूर्व ही होगा। अतः वि. सं. 1812 के आस-पास भूधरदास का अस्तित्व निर्विवाद सिद्ध हो जाता है । ब्र. रायमल ने अपने द्वारा लिखित " जीवनपत्रिका" में जयपुर से आगरा जाने, सिंघाणा में टोडरमलजी से मिलने आदि का विवरण इस प्रकार दिया है।
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“पीछे केताइक दिन रहि टोडरमल जैपुर के साहूकार का पुत्र ताकै विशेष ज्ञान जानि बाहूं जितने के अर्थ जैपुर से वाकू पाया अर एक बंसीधर किंचित संजम का धारक विशेष व्याकरणादि जैन मत के शास्त्रां का पाठी, सौ पचास लड़का पुरुष बायां जा नखै व्याकरण छंद अलंकार काव्य चरचा पढ़ें, तासूं मिले |
पीछे वानै छोडि आगरै गए । उहां स्याहगंज विषै भूधरमल्ल साहूकार व्याकरण का पाठी, घणां जैन शास्त्रां का पारगामी तासूं मिले और सहर विषै एक धर्मपाल सेठ जैनी अग्रवाल व्याकरण का पाठी मोती कटला कै चैताले शास्त्र का व्याख्यान करे, और सौ दोय से साधर्मी भाई ता सहित वासूं मिलि फेरि जैपुर पाछा आए ।
पीछे सेखावाटी विषै सिंघाणां नम्र तहां टोडरमल्लजी एक दिल्ली का बड़ा साहूकार साधर्मी ताकै समीप कर्म कार्य कै अर्थि वहां रहे, तहां हम गए अर टोडरमल्लजी सूं मिले, नाना प्रकार के प्रश्न किए, ताका उत्तर एक गोमट्टसार नामा ग्रन्थ की साखि सूं देते भए । ता ग्रन्थ की महिमा हम पूर्वे सुणी थी, तासूं विशेष देखी। अर टोडरमल्लजी का ज्ञान की महिमा अद्भुत देखी ।" "
1. पंडित टोडरमल : व्यक्तित्व एवं कर्तृत्व, डॉ. हुकमचन्द भारिल्ल पृष्ठ 46
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2. पंडित टोडरमल : व्यक्तित्व एवं कर्तृत्व, डॉ. हुकमचन्द भारिल्ल परिशिष्ट 1, जीवन पत्रिका ब्र. रायमल द्वारा लिखित पृष्ठ 334-335