Book Title: Mahakavi Bhudhardas Ek Samalochantmaka Adhyayana
Author(s): Narendra Jain
Publisher: Vitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer
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एक समालोचनात्मक अध्ययन
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ये पद पांचों परमेठ। ये ही सांच और सब हेठ ॥ ये मंगल पूज्य अतीव। ये ही उत्तम सरन सदीव ॥' सकल पूज्य पद पूज के अल्पबुद्धि अनुसार। भाषा पार्श्वपुराण की, करौ स्व पर हितकार ॥' शक्ति भक्ति बल कविन पै, जिनगुन वरनै जाहिं ।
मैं अब वरनों भक्तिवश शक्ति मूल मुझ नाहिं।।' भूधरदास स्वयं गुणग्राही हैं और वे दूसरों को भी गुणग्राहक बनने का उपदेश देते हैं -
भूधरविनवै विनय करि, सुनियौ सज्जन लोग। गुण के ग्राहक हूजिये, इह विनती तुम जोग । गुणग्राही शिशु थन लगै, रुथिर छोड़ी पय लेत।
इह बालक सो सिखिये, जो शिर आये सेत ॥' हिंसा एवं बैर के विरोधी :- भूधरदास हिंसा एवं वैर के विरोधी हैं। भूधरदास हिंसा को पाप एवं दुर्गति के दुःखों का कारण मानते हैं -
हिंसा करम परम अद्य हेत, हिंसा दुरगति के फल देत। हिंसा सो भ्रमिये संसार, हिंसा निज पर को दुखकार ।'
भूधरदास धर्म के नाम पर यज्ञादि में होने वाली हिंसा के भी विरोधी है; इसलिए पशुबलि का निषेध करने हेतु वे पशुओं की ओर से यज्ञकर्ता से प्रश्न करते हैं।'
इसी तरह वे वैर भाव को दुःख का कारण तथा मैत्री भाव को सुख का कारण मानते हुए वैर छोड़ने एवं मैत्री करने का उपदेश देते हैं - 1, पार्श्वपुराण- भूधरदास पृष्ठ 2 2. पार्श्वपुराण- भूधरदास पृष्ठ 2 3. पावपुराण-भूधरदास पृष्ठ 2 4. चर्चा समाधान, भूधरदास, अन्तिम प्रशस्ति पृष्ठ 122 5. पार्श्वपुराण- भूघरदास पृष्ठ 10 6. जेनशवक, पद्य 47