Book Title: Mahakavi Bhudhardas Ek Samalochantmaka Adhyayana
Author(s): Narendra Jain
Publisher: Vitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer
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एक समालोचनात्मक अध्ययन
जो
का मति देहु । कर बार बार ॥
जिज्ञासु होने एवं विचार करने की प्रेरणा देते हुए भूधरदास कहते हैं कि - तुम नीकै लीनों जान, तामैं भी है बहुत बिजान । तातैं सदा उग्रमी रहो, ज्ञानगुमान भूलि जिन गहो । जो नवीन चरचा सुन लेहु ताको तुरत दोय चार दिन करो विचार एकचित तामैं कहा दोष है मीत विनय अंग जिनघत की नीत । आज्ञा भंग है पाप विशाल, मूरख नर के भासै ख्याल || सम्यग्दृष्टि जीव सुजान, जिनवर उक्ति करें सरधान । अजथारथ सरधा भी करें, मंदज्ञानजुत दोष न घरै ॥ सूत्र सिद्धान्त साख जब होई, सत सरधान दिढ़ावै कोई । जो हठसों नाहीं सरधहै, तबसौं जानि मिथ्यात्वी कहै ।'
भूधरदास जैन धर्म की चर्चाओं के समाधान अपने और दूसरों के कल्याण के लिए जैन शास्त्रों की साक्षीपूर्वक ( प्रमाणपूर्वक ) करते हैं इसलिए वे समाधान प्रमाणिक हैं।
इस ग्रन्थ में पहली चर्चा प्रारम्भ करने के पूर्व सज्जन गुणग्राही जनों से भूधरदास प्रार्थना करते हुए कहते हैं -
" इस चरचा समाधान ग्रंथविषै केतेक संदेह साधम्र्मी जनों के लिखे आए, शास्त्रानुसार तिनका समाधान हुआ है, सो लिखा है। अब तो बहुश्रुत सज्जन गुणग्राही हैं, तिनसूं मेरी विनती है, इस ग्रंथ को पढ़वे की अपेक्षा कीजो, आद्योपांत अवलोकन करियो । जो चरचा तुम्हारे विचार कौ सद्दहै, सो प्रमाण करसो, जो विचार में न सहैं वहां मध्यस्थ रहना और जैन की चरचा अपार है, काल दोषसौं तथा मतिश्रुत की घटतीसौं तिनविषै संदेह बहुत पड़े तिस तिनका कहा तांई कोई निर्णय करेगा । चतुर्थकाल विषै छठे साते गुणस्थानवर्ती साधु के पद पदार्थ के चितवन में भांति उपजै, केवली - श्रुतकेवली बिना निर्णय न होई तो
चर्चा
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समाधान, भूधरदास पृष्ठ 4
1. 2. जैन
की साख सौं, स्वपर हेतु उर आन ।
चरचा निर्नय लिखित है, कीज पुरुष प्रधान ॥ चर्चा समाधान, भूधरदास पृष्ठ 4
सूत्र