Book Title: Mahakavi Bhudhardas Ek Samalochantmaka Adhyayana
Author(s): Narendra Jain
Publisher: Vitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer
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महाकवि भूधरदास :
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अयोग्य का विचार करके ही कोई कार्य करते थे । तत्त्व चर्चा और तत्त्व निर्णय के सम्बन्ध में भी वे विचार करने एवं तत्त्व के जानने वाले लोगों से पूछने की सलाह देते हैं
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नीति सिंहासन बैठो वीर, मति श्रुत दोऊ राख वजीर । जोग अजोगह करो विचार, जैसे नीति नृपति व्यवहार ॥ जो चरचा चितमें नहि चढ़ें, सो सब जैन सूत्रसों कदै । अथवा जे श्रुतमरमी लोग, तिन्हें पूछ लीजै यह जोग ॥
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वे किसी नवीन वार्ता को सुनकर या तत्त्व की कोई विशेष चर्चा को सुनकर तत्काल उसकी उपेक्षा न करके उस पर बार-बार विचार करने की प्रेरणा भी देते हैं
जो नवीन चरचा सुन ले दोय चार दिन करो विचार,
ताकों तुरत धका मति देहु । एक चित कर बारबार ॥
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धैर्यशील :- भूधरदास असाता कर्म के उदय में विपत्ति आने पर अधीर न होकर धैर्य धारण करने एवं उसके ज्ञाता दृष्टा बनने की कोशिश करते हैं तथा दूसरों को भी ऐसा ही उपदेश देते हैं
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आयो है अचानक भयानक असाता कर्म, ताके दूर करिवे को बलि कौन अह रे । जे जे मन भाये ते कमाये पूर्व पाप आप, तेई अब आये निज उदै काल लह रे । एरे मेरे बीर काहे होत हैं अधीर यामै, कोड कौन सीर तू अकेलो आप सह रे । भये दिलगीर कछु पीर न विनसि जाय, ताही तैं सयाने तू तमासगीर राह रे ॥ भाग्यवादी :- भूधरदास धन सम्पत्ति आदि की प्राप्ति भाग्य (पूर्वोपार्जित
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कर्म का फल ) के अनुसार मानते हैं। वे कहते है कि चाहे कितना भी परिश्रम तथा सोच विचार किया जाय परन्तु धन भाग्य से अधिक या कम नहीं मिल सकेगा -
जो धन लाभ लिलार लिख्यौ, लघु दीरघ सुकत के अनुसारै । सो लहि है कछू फेर नहीं, मरूदेश के ढेर सुमेर सिधारै ॥
1. चर्चा समाधान, भूधरदास, पृष्ठ 3 2 चर्चा समाधान, भूधरदास, पृष्ठ 4 3 जैन शतक, भूधरदास, पद्य 71