Book Title: Mahakavi Bhudhardas Ek Samalochantmaka Adhyayana
Author(s): Narendra Jain
Publisher: Vitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer
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एक समालोचनात्मक अध्ययन
घाट न बाढ़ कहीं वह होय, का कर आवत सोच विचारै। कूप किधौ भर सागर मैं नर, गागर मान मिले जल सारे ॥'
धार्मिक :- भूधरदास का जीवन अत्यन्त धार्मिक था। उनके अनुसार मानव जीवन की सार्थकता धर्म को आत्मसात् कर धार्मिक बनने में ही है। धर्म-साधन करने के लिए हिंसा, झूठ, चोरी, कुशील, तृष्णा (परिग्रह) आदि का त्याग आवश्यक है। साथ ही मद्य-मांस से बचाव एवं दसरों की निन्दा और अपनी प्रशंसा का त्याग भी जरूरी है। देवपूजा आदि षट्कर्मों का पालन एवं साधु पुरुषों की संगति भी धार्मिक चित्त के लिए अनिवार्य है । सच्चे देव, शास्त्र, गुरु, धर्म आदि को जान पहिचान कर सच्चे मार्ग पर चलना प्रत्येक धार्मिक व्यक्ति का कर्तव्य है। भूधरदास के शब्दों में -
देव गुरु साँचे मान साँचो धर्म हिये आन, साँची ही बखान सुनि साँचे पंच आव रे। जीवन की दया पाल झूठ तजि चोरी टाल, देख ना विरानी बाल तिसना घटावरे॥ अपनी बढ़ाई परनिन्दा मत करै भाई यही चतुराई मद मांस को बचाव रे। साध षटकर्म साधु संगति में बैठ वीर,
जो है धर्म साधन को तेरे चित चाव रे ॥ भूधरदास की दृष्टि में मनुष्य जीवन की सार्थकता धर्म पालन करने में है। बिना धार्मिक कृत्यों के मानव जीवन व्यर्थ गँवाना ठीक नहीं है। ' मानव शरीर के प्रत्येक अंग की सार्थकता धर्म सेवन एवं उसके निमित्त-भूत जिनकथा के श्रवण, पठन, कथन आदि में ही है।'
1. जैनशतक, भूधरदास, पछ 75 2. जैनशतक, भूधरदास, पद्य 44 3. (क) ऐसे श्रावक कुल तुम पाय व्यथा क्यों खोवत हो। ।टेक। -भूधरविलास पद (ख) कर कर जिन गुन पाठ, जात अकारथ रे जिया । आठ पहर में साठ,घरी घनेरे मोल की ॥
- जैनशतक पद्य 22 4, पै यह उत्तम नर अवतार। जिन चरचा बिन अफल असार ॥
सुपि पुरान जो घुमे न सोस । सो थोथे नारेल सरीस ।। जिन चरित्र जे सुने न कान । देर गेह के छिद्र समान || जो मुख जैन कथा नहिं कोय। जीभ मुजंगनि के बिल सोय ।। - पार्श्वपुराण, पृष्ठ 2