Book Title: Mahakavi Bhudhardas Ek Samalochantmaka Adhyayana
Author(s): Narendra Jain
Publisher: Vitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer
View full book text
________________
121
एक समालोचनात्मक अध्ययन
पंडित दौलतराम द्वारा भी इस कथन की पुष्टि होती है . “वे आगरा में स्याहगंज में रहते थे। स्याहगंज मन्दिर में उनका प्रतिदिन शास्त्र प्रवचन हुआ करता था।"
समाधानकर्ता :- भूधरदास एक अच्छे समाधानकर्ता भी थे। जैनधर्म एवं दर्शन से सम्बन्धित अनेक चर्चाओं का उन्होंने आगम एवं युक्तिसंगत समाधान किया है । शंकाओं के समाधान करते समय उन्होंने स्वयं ही तत्सम्बन्धी प्रतिशंकाओं को उठा कर उनका भी उचित समाधान प्रस्तुत किया है। उनके द्वारा प्राय: सभी शंकाओं के समाधान आगम ग्रन्थों एवं अन्य शास्त्रों के प्रमाणों द्वारा पुष्ट एवं सम्मत करने का प्रयास किया गया है।
निरभिमानी :- भूधरदासजी अत्यन्त निरभिमानी व्यक्ति थे, इसलिए वे महाकाव्य की रचना करने वाले महाकवि होकर भी अपने आप को अल्पबुद्धि वाला सामान्य मानव ही मानते हैं । वे लिखते हैं -
"जिनगुण कथन अगम विस्तारा, बुद्धि बल कौन लहै कवि पार ।। जिनसेनादिक सूरि महन्त । वरनन कर पायो नहिं अन्त ।। तौ अब अल्पमति जन और। कौन गति में तिनकी दौर ।। जो बहुभार गयंदन बहै । सो क्यों दीन शशक निरवहै ।'
इसी तरह उनकी दृष्टि में पावपुराण की रचना का उद्देश्य अभिमान या सम्मान की चाह नहीं है। अपितु स्व-पर का कल्याण करना है -
जौं लों कवि काव्यहेत आगम के अच्छर को, अरथ बिचारें तोलौ सिद्धि शुभध्यान की
और वह पाठ जब भूपरि प्रगट होय पदै सुनै जीव तिन्हें प्रापति है ज्ञानकी ऐसे निज परको विचार हित हेतु हम उद्यम कियो है नहिं बान अभिमान की ज्ञान अंश चाखा भई ऐसी अभिलाखा अब
कर्स जोरि पाखा जिन पारसपुरान की।' 1. अनेकान्त वर्ष 10 किरण 1 पृष्ठ 9-10 2 पार्श्वपुराण, भूधरदास पृष्ठ 2 3. पाचपुराण, भूधरदास पृष्ठ 2