Book Title: Mahakavi Bhudhardas Ek Samalochantmaka Adhyayana
Author(s): Narendra Jain
Publisher: Vitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer
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महाकवि भूघरदास : व्यक्तित्व :- भूधरदास के साथ पंडित , कविवर, ' महाकवि पंडित" आदि विशेषणों का प्रयोग देखा जाता है। सामान्यत: जैन परम्परा में “पंडित" शब्द का प्रयोग सर्वत्र विद्वता के अर्थ में किया जाता है, विशेषत: ज्ञानी सम्यग्दृष्टि के अर्थ में परन्तु जातिगत अर्थ में इसका प्रयोग नहीं किया जाता है। भूधरदास ने अपने ग्रन्थ “चर्चा समाधान" में विविध चर्चाओं के समाधान हेतु लगभग 85 जैनग्रन्थों के नाम, उद्धरण एवं प्रमाण प्रस्तुत किये । इससे सिद्ध होता है कि वे बहुशास्त्रविद् एवं प्रकाण्ड विद्वान थे। ब्र. रायमल भी उन्हें “व्याकरण का पाठी एवं बहुत जैन शास्त्रों के पारगामी १ बतलाते हैं ।भूदरदास का व्यक्तित्त्व अनेक गुणों से विभूषित था ।संक्षेप में उनमें विद्यमान गुणों का विवेचन निम्नलिखित है
महाकवि :- भूधरदास ने पार्श्वपुराण, जैन शतक और अनेक पदों की रचना की है। इसलिए वे कवि तो है ही, साथ ही कवियों में श्रेष्ठ “कविवर" एवं "पार्श्वपुराण” नामक महाकाव्य के रचयिता होने के कारण "महाकवि" भी है।
अध्यात्मरसिक :- पंडित दौलतराम कासलीवाल भूधरदास को पंडित, कवि तथा अध्यात्मरसिक मानते हुए लिखते हैं कि - "भूधरदास कवि थे और पण्डित भी। अध्यात्म चर्चा में उन्हें विशेष रस आता था।"
प्रवचनकार :- भूधरदास कवि एवं पंडित होने के साथ-साथ एक अच्छे प्रवचनकार भी थे। उनका आगरा के स्याहगंज (शाहगंज ) जैन मन्दिर में प्रतिदिन प्रवचन होता था। इस सम्बन्ध में ब्र. रायमल लिखते है - "स्याहगंज के चैतालै भूधरमल्ल शास्त्र का व्याख्यान करे और सौ दोय सै साधर्मी भाई ता सहित वासू मिलि फेरि जैपुर पाछा आए"7 1 चर्चा समाधान एवं बहनपद संग्रह, प्रकाशक जिनवाणी प्रचारक कार्यालय कलकत्ता,
वीर नि. सं. 2452 2. पार्श्वपुराण की सभी प्रकाशित प्रतियों के नाम के पूर्व 'कविवर' विशेषण मिलता है। 3. "जैन शतक प्रकाशक अखिल भारतीय जैन युवा फैडरेशन शाखा भिण्ड सन् 1990,
नाम के पूर्व उपर्युत उपाधि दी गई है। 4. पंडित टोडरमल : व्यक्तित्व एवं कर्तृत्व,डॉ. हुकमचन्द भारिल्ल परिशिष्ट 1, जीवन पत्रिका
न. रायमल पृष्ठ 334 5. पार्चपुराण का महाकाव्यात्मक अनुशीलनः प्रस्तुत शोध प्रबंध, पंचम अध्याय 6. अनेकान्त वर्ष 10 किरण 1 पृष्ठ 9-10 6. पंडित टोडरमल : व्यक्तित्व एवं कर्तृत्व,डॉ. हुकमचन्द भारिल्ल परिशिष्ट 1,जीवन पत्रिका
अ. रायमल पृष्ठ 334