Book Title: Mahakavi Bhudhardas Ek Samalochantmaka Adhyayana
Author(s): Narendra Jain
Publisher: Vitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer
View full book text
________________
15
एक समालोचनात्मक अध्ययन
कवि भूधरदास ने अपने साहित्य में अनेक छन्दों एवं रागों का प्रयोग किया है।
परिवार - भूधरदास ने अपने माता-पिता, पत्नी, संतान आदि के बारे में न तो कहीं उल्लेख किया है और न ही इस सम्बन्ध में कोई बहिक्ष्यि उपलब्ध होते हैं ; इसलिए उनके परिवार की सम्पूर्ण जानकारी अज्ञात ही है। इस सम्बन्ध में कुछ कहना मात्र सम्भावना ही होगी, निश्चित तथ्य नहीं।
निवास स्थान एवं कार्यक्षेत्र - भूधरदास का निवास स्थान एवं कार्यक्षेत्र आगरा ही था। इस सम्बन्ध में उन्होंने स्वयं अपनी रचनाओं में उल्लेख किया है -
"आगरे में बालबुद्धि भूधर खण्डेलवाल। बालक के ख्याल सौ कक्ति कर जाने है।। “पूरब चरित विलोकि के, भूधर बुद्धि समान।
भाषा बन्ध प्रबन्ध यह कियौ आगरे धान ।।* * पूर्व उल्लिखित ब्र. रायमल और पं. दौलतराम कासलीवाल के उद्धरणों से भी भूधरदास का निवास स्थान एवं कार्यक्षेत्र “आगरा" निर्विवाद निश्चित होता है।
जन्म-मृत्यु एवं रचनाकाल - भूधरदास का जन्म एवं मृत्यु का निश्चित समय तो अविदित है, परन्तु उनकी रचनाओं के काल के आधार पर उनका समय निश्चित किया जा सकता है।
भूधरदास द्वारा लिखित प्रथम कृति “जैन शतक' का रचनाकाल वि सं. 1781 है -
“सतरह से इक्यासिया, पोह पाख तमलीन।
तिथि तेरस रविवार को, शतक समापत कीन ॥"5 . यह शतक पौष कृष्णा त्रयोदशी रविवार सं. 1781 को समाप्त किया गया। 1. दोहा, चौपाई, सौरठा, छप्पय, अडिल्ल, पद्धड़ी, कुण्डलिया, आर्या, धत्ता,विभंगी, हंसाल आदि 2. कल्याण, काफी, कन्हड़ी, काफी कन्हड़ी, गौरी, घनाश्री, नट, पंचम, प्रभाती, बंगला,बिलावल,
भैरवी, मलार, रामकली, विहाग, श्री गौरी, सारंग, सौरठा आदि 3. जैन शतक छन्द 106
4. पार्श्वपुराण अन्तिम प्रशस्ति पृष्ठ 95 5. जैन शतक अन्तिम पद