Book Title: Mahakavi Bhudhardas Ek Samalochantmaka Adhyayana
Author(s): Narendra Jain
Publisher: Vitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer
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एक समालोचनात्मक अध्ययन
भूधरदास जिन धर्मी ठीक रहे स्याहगंज में तहकीक । जिन सुमिरन पूजा परवीन, दिन प्रति करे अशुभ को छीन ।।१। हेमराज साधर्मी भले. जिन बच मानि असुभ दल मलै। अध्यातम चरचा निति करे, प्रभु के चरण सदा उर धरै ||16 || सदानन्द है आनन्द मई, जिनमत की आज्ञा तिह लही। अमरपाल भी यामे लिख्यौ, परमागम को रस तिन चख्यौ ।।17।। लाल बिहारी हूँ नित सुने, जिन आगम को नीकै मुने। फतेहचन्द है रोचक जीकै, चरचा करै हरष थरि जीकै ॥18 || चत्रभुज साधरभी जोई, घुकी भक्ति जसु प्रभु की ओर। मिले आगरे कारन पाय, चरिचा करे परस्पर आय || 19 ॥'
इस सम्बन्ध में डॉ. कस्तूरचन्द कासलीवाल द्वारा लिखित निम्नलिखित कथन द्रष्टव्य है
"भूधरदास महाकवि दौलतराम के समकालीन विद्वान थे। पुण्यात्रव कथाकोश की प्रशस्ति में सर्वप्रथम इन्हीं (भूधरदास) का स्मरण किया गया है । ये ही वे भूधरदास हैं, जिन्होंने “पार्श्वपुराण" जैसे प्रबन्धकाव्य की रचना संवत् 1789 में समाप्त की थी। आगरा की अध्यात्मसैली के ये प्रमुख विद्वान थे । कवि (दौलतराम) का सर्वप्रथम इन्हीं से परिचय हुआ और इन्ही की प्रेरणा से वे साहित्य-निर्माण की ओर प्रवृत्त हुये।" 2
एक अन्य स्थान पर डॉ. कासलीवाल लिखते हैं कि - "विवाह होने पर महाकवि दौलतराम को एक बार कार्यवश आगरा जाना पड़ा। वसबा से आगरा 100 मील से कुछ अधिक दूर है। आगरा उस समय उत्तर भारत का प्रमुख नगर था। मुगल शासकों की राजधानी होने के कारण वह व्यापार का प्रसिद्ध केन्द्र था। लेकिन इन सबके अतिरिक्त वह सांस्कृतिक नगर भी था और आध्यात्मिक सैली का केन्द्र भी । महाकवि बनारसीदास का स्वर्गवास हुये 70
1. पुण्यात्रव कथा-कोश प्रशस्ति - पं. दौलतराम कासलीवाल 2. दौलतराम कासलीवाल ब्यक्तित्व और कृतित्व- डॉ. कस्तूरचन्द कासलीवाल प्रस्तावना पृष्ठ 99