Book Title: Mahakavi Bhudhardas Ek Samalochantmaka Adhyayana
Author(s): Narendra Jain
Publisher: Vitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer
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एक समालोचनात्मक अध्ययन
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भूधरदास : जीवनवृत्त एवं व्यक्तित्व जीवनवृत्त • संस्कृत एवं हिन्दी के अधिकांश कवियों ने अपनी रचनाओं में न अपना कोई परिचय दिया है और न कोई प्रामाणिक साक्ष्य ही तत्सम्बन्ध में उपलब्ध है। ऐसी परिस्थिति में कवि को रचना में उपलब्ध किसी ऐसी पंक्ति का सहारा लेना पड़ता है, जिसमें उसके परिचय की ओर संकेत हो। कवि भूधरदास के सम्बन्ध में भी यही कथन चरितार्थ होता है । “जैन शतक" में दिये गये एक पद से केवल इतना ही ज्ञात होता है कि कवि आगरा निवासी था और उसकी जाति खण्डेलवाल थी। वह पद इस प्रकार है - “आगरे में बालबुद्धि भूधर खण्डेलवाल, बालक के ख्यालसों कवित्त कर जानेहै । ऐसे ही करत भयौ जैसिंह सवाई सूबा, हाकिम गुलाबचन्द आये तिहि थाने है । हरिसिंह साहके सु वंश धर्मानुरागी नर, तिनके कहै सौ जोरि कीनी एक ठानेहै । फिरि-फिरि प्रेरे मेरे आलस को अन्त भयो, इनकी सहाय यह मेरो मनमाने है ।।
मैं, भूधरदास खण्डेलवाल आगरा में बालकों के खेल जैसी कविता (रचना) करता हूँ। ये उक्त छन्द मैंने सवाई जयसिंह सूबा के हाकिम श्री गुलाबचन्द्र जी और श्री हरिसिंहशाह के वंशज धर्मानुरागी पुरुषों के कहने से एकत्रित किये हैं। उन्हीं लोगों की पुन: पुन: प्रेरणा से मेरे आलस्य का अन्त हुआ है । मैं उनका हृदय से आभार मानता हूँ।
इस प्रकार भूधरदास का जन्म आगरा में खण्डेलवाल जैन परिवार में हआ था । पं.ज्ञानचन्द जैन " स्वतन्त्र" के अनुसार उनका जातिगत गोत्र कासलीवाल था। वे आगरा में शाहगंज में रहते थे और उनका शाहगंज जैन मन्दिर में प्रतिदिन प्रवचन होता था। वे प्रकाण्ड विद्वान, अच्छे कवि एवं प्रवचनकार थे। उनके द्वारा रचित “जैन शतक", "पार्श्वपुराण” एवं “पद संग्रह" - ये तीन रचनाएँ अति प्रसिद्ध हैं। इससे अधिक कवि का परिचय कहीं भी प्राप्त नहीं होता है। उनके जन्म, माता-पिता, शिक्षा-दीक्षा, पली, संतान, मत्य आदि के बारे में कोई उल्लेख नहीं मिलता है । कई समीक्षकों ने भी इसी कथन का पुनरावर्तन किया है, उनमें से मुख्य है - डॉ. कामताप्रसाद जैन ' डॉ. नेमिचन्द शास्त्री ' एवं मूलचन्द वत्सल' आदि। 1. हिन्दी बैन साहित्य का संक्षिप्त इतिहास- डॉ. कामताप्रसाद जैन पृष्ठ 172 2. जैन साहित्य परिशीलन भाग - 1 डॉ. नेमीचन्द्र शास्त्री 3. प्राचीन हिन्दी जैन कवि- श्री मूलचन्द वत्सल