Book Title: Mahakavi Bhudhardas Ek Samalochantmaka Adhyayana
Author(s): Narendra Jain
Publisher: Vitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer
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एक समालोचनात्मक अध्ययन
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गुरु कुम्हार सिप कुंभ है गढि गढि काढे खोट।
अन्दर हाथ सहार दे बाहर बाहै चोट ।। कवीर की दृष्टि में सद्गुरु वही है जो शब्दबाण को सफलतापूर्वक चला सके और जिसके लगते ही शिष्य का मोहजाल विदीर्ण हो जाय -
सतगुरु लई कमाण करि, बाहण लागा तीर ।
एक जु बाह्या प्रीति सू, भीतरी रह्या सरीर॥1 सद्गुरु ने ऐसा अन्दरूनी घाव किया है कि साधक अन्दर से चूर चूर हो गया अर्थात् उसका अहंकार भीतर से नष्ट हो गया -
सतगुरु साँचा सूरमा, नख सिख मारा पूर।
बाहर घाव न दीसई भीतर चकनाचूर ॥ पलटू साहब गुरुरूपी जहाज से भवसागर पार होना मानते हैं -
__भवसागर के तरन को पलटू सन्त जहाज इस प्रकार सम्पूर्ण सन्त साहित्य में सद्गुरु की महिमा बहुविध वर्णित
10. सत्संग का महत्व - सन्त साहित्य में जहाँ सदगुरु का महत्त्व है, वहाँ सत्संग की भी महिमा है । सद्गुरु और सत्संग की महिमा के प्रख्यापन में सगुण भक्तों और निर्गुण सन्तों में कोई भेद नहीं है। सत्संग से कुप्रवृत्तियों पर आधात होकर सत्प्रवृत्तियों का मार्ग प्रशस्त होता है और व्यक्ति सम्यक् उन्नति के पथ पर आरूढ़ होता है । सन्तों की संगति निमिष मात्र में करोड़ों अपराधों को नष्ट कर देती है -
एक घड़ी आधी घड़ी, आधी हूँ से आध।
कबीर संगत साधु की, कटे कोटि अपराध ।।
सन्तों की संगति अति दुर्लभ है, तभी तो सन्त गरीबदास कहते हैं कि पण्डित और ज्ञानी तो संसार में अनन्त हैं, किन्तु साधु सन्त विरले ही मिलते हैं
पडित कोटि अनन्त हैं ज्ञानी कोटि अनन्त । श्रोता कोटि अनन्त है विरले साधू सन्त ॥
1. कबीर ग्रन्थावली (गुरुदेव को अंग) पृष्ठ 2 साखी 11 2, सन्त सुधासार, पलटूसाहन, गुरु का अंग, दिल्ली दूसरा खण्ड) पृष्ठ 267 साखी 16