Book Title: Mahakavi Bhudhardas Ek Samalochantmaka Adhyayana
Author(s): Narendra Jain
Publisher: Vitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer
View full book text
________________
एक समालोचनात्मक अध्ययन
डॉ. गोविन्द त्रिगुणायत ने स्वीकार किया है कि सन्त लोग जैन दर्शन से परिचित थे।
सन्तों ने न तो वेद पढ़े थे और न, कुरान अपितु देशभर में फैले हुए योगियों का सत्संग अवश्य किया था। यह सत्संग ही इन सन्तों की वाणी का मूल स्रोत है । इन योगियों में जैन योगियों का भी सत्संग अवश्य हुआ होगा। अत: सन्त काव्य को जैनाचार्यों से प्रभावित माना जा सकता है। इस सम्बन्ध में डॉ. पवनकुमार जैन लिखते हैं कि - "उन्होंने जैन दर्शन के सिद्धान्तों को प्रत्यक्ष रूप से अपनाने की सम्भवत: कोई चेष्टा नहीं की थी; फिर भी तत्कालीन जैन मुनियों की सत्संगति के प्रभाव से जैनदर्शन के कुछ सिद्धान्तों की छाया उनकी विचारधारा पर पड़ गयी है । अध्यात्म पक्ष की अपेक्षा सन्त लोग जैनदर्शन • के आचार पक्ष से अधिक प्रभावित हुये हैं। उनमें सम्यग्दर्शन, सम्यम्ज्ञान और
सम्यग्चारित्र से सम्बन्धित अनेक उक्तियाँ मिलती है। कुछ सन्तों में तेरह गुणस्थानों का भी सफल मिलता है। जैनदर्शन के अध्यात्म पक्ष की दो- एक बातों का भी सन्तों की बानियों पर प्रभाव ढूँढ़ा जा सकता है।"
आचार्य परशुराम चतुर्वेदी भी सन्त साहित्य पर जैनधर्म एवं जैनाचार्यों का प्रभाव स्वीकार करते हैं । इस सन्दर्भ में “सास्कृतिक रेखाएँ" में उनके लेख "सन्त साहित्य और जैन हिन्दी कवि" को देखा जा सकता है।
इस प्रकार हम कह सकते है कि सन्त साहित्य जैनधर्म, जैनदर्शन एवं जैनाचार्यों से भी प्रेरित प्रभावित है।
हिन्दी के निर्गुण सन्त काव्य में अनेक विरोधी प्रवृत्तियाँ की ओर इंगित करते हुए आचार्य रामचन्द्र शुक्ल का कथन है- “निर्गुणवाद वाले और दूसरे संतों के वचनों में कहीं भारतीय अद्वैतवाद की झलक मिलती है, कहीं योगियों के नाड़ी चक्र की, कहीं सूफियों के प्रेमतत्त्व की, कहीं पैगम्बर (कट्टर खुदावाद) की और कहीं अहिंसावाद की। अत: तात्त्विक्र दृष्टि से न तो हम इन्हें पूरे
1. हिन्दी की निर्गुण काव्यधारा और उसकी दार्शनिक पृष्ठभूमि- डॉ. गोविन्द त्रिगुणायत
पृष्ठ 96-97 2. महावीर वाणी के आलोक में हिन्दी का सन्त काव्य-डॉ. पवनकुमार जैन पृष्ठ 95