Book Title: Mahakavi Bhudhardas Ek Samalochantmaka Adhyayana
Author(s): Narendra Jain
Publisher: Vitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer
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गत:
महाकवि भूधरदास : यद्याने सामान्यत: इन सन्तों में नापताम्य, विचार और चिन्तन ऐक्य उपलब्ध होता है तथापि उनमें मौलिकता सर्वत्र विद्यमान है। इन सभी सन्तों ने कथनी और करनी के ऐक्य द्वारा एक नवीन जीवन दर्शन की स्थापना की तथा मानव जीवन को समुन्नत करने, उसका आध्यात्मिक आधार पर पुनर्निर्माण करने, इस लोक में रहकर भी जीवनमुक्त रहने तथा विश्व कल्याण में सहयोग देने को अपना लक्ष्य बनाया। इसी दृष्टि से उनका साहित्य सर्वथा स्पृहणीय एवं पंसगिक रहा है और भविष्य में भी रहेगा।
सन्त काव्य की परम्परा तत्त्वत: उस काव्यरचना पद्धति की ओर संकेत करती हैं, जो मानव समाज की मूल प्रवृत्तियों पर आधारित है । वह किसी समय आप से आप चल पड़ी थी और वह निरन्तर उसी रूप में विकसित भी होती गई। वह उस काल से विद्यमान है, जब भाषा के ऊपर व्याकरण, पिंगल, काव्यशास्त्र आदि के नियम उपनियमों का कोई बन्धन नहीं था । यद्यपि व्याकरण आदि के काव्यशास्त्रीय नियमों से आबद्ध काव्य उसी समय शिष्ट या सभ्य वर्ग द्वारा सम्माननीय बन रहा था, फिर भी मानव की स्वाभाविक प्रवृत्तियों को प्रतिबिम्बित करने वाला, व्याकरण, भाषा, रस, छन्द, अलंकार आदि के नियमों में न बँधने वाला जनसामान्य द्वारा आदरणीय सन्तकाव्य तथा अन्य समस्त धार्मिक साहित्य भी समाज की अमूल्य सांस्कृतिक धरोहर बन रहा था।
सन्त साहित्य अपने आकार प्रकार में विपुल एवं विविध है। परन्तु उस पर किसी एक जाति, धर्म, सम्प्रदाय भाषा एवं भाव का एकाधिकार नहीं है। वह जाति, देश, काल आदि से परे सार्वजनिक सार्वभौमिक एवं सार्वकालिक है। विषय वस्तु की दृष्टि से वह जितना महान है, उससे कहीं अधिक महिमा-मंडित । सन्त काव्य में मानवीय मूल प्रवृत्तियों का न केवल उदात्तीकरण हुआ, अपितु उनको सभी प्रकार से चरमोत्कर्ष पर पहुँचाने का स्तुत्य एवं सराहनीय प्रयास भी किया गया। साथ ही उन सन्तों के द्वारा जो साक्षर न होकर भी शिक्षित थे। उनके द्वारा अपने अमूल्य प्रदेय को या चिन्तन को कोरी कल्पना के धरातल पर ही नहीं छोड़ दिया गया, अपितु उसे अनुभव की भावभूमि पर भी उतारा गया। उनके सभी विचार अनुभव द्वारा पुष्ट हुए हैं। इनका भावसौन्दर्य