Book Title: Mahakavi Bhudhardas Ek Samalochantmaka Adhyayana
Author(s): Narendra Jain
Publisher: Vitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer
View full book text
________________
एक समालोचनात्मक अध्ययन
29 मार्च 1712 को जहाँदरशाह सिंहासन पर बैठा । उसको बंदी बनाकर और वध करवाकर फरूखशियार गद्दी पर बैठा। जहाँदरशाह का राज्यकाल राजनीतिक दृष्टि से उपेक्षणीय है, परन्तु फरूखशियार का समय राजनीतिक उथल पुथल के कारण महत्त्वपूर्ण है । अमानुषिक ढंग से फरूखशियार का वध 'उस युग की हीन और घृणित राजनीति का परिचायक है । फरूखशियार के छह वर्ष के राज्यकाल में मराठों, सिक्खों एवं सैयदों के कारण देश की राजनीति निरन्तर क्षुब्ध रही।
फरूखशियार के अनन्तर मुहम्मदशाह का राज्यकाल विशेष महत्त्वपूर्ण है । कवि द्यानतराय के शब्दों में उसके शासन की दशा निम्न प्रकार थी -
अकबर जहाँगीर साहजहाँ भए बहु लोक में सराहे हम एक नाहि पेखा है। अवरंगसाह बहादरसाह मौज्दीन, फरकसेर ने जिया दुख विसेखा है। द्यानत कहाँ लग बड़ाई करे साहब की, जिन पातसाहन को पातसाह लेखा है। जाकेराज ईति भीति बिना सब लोकसुखी, बड़ा पातसाहपहपदसाह देखा है ।।
उसके लगभग तीस वर्ष के शासन काल में उसे न केवल हैदराबाद, अवध और मराठों की आन्तरिक कलह सुलझानी पड़ी, अपितु नादिरशाह और अहमदशाह दुर्रानी के बर्वर एवं विनाशकारी आक्रमण का सामना भी करना पड़ा। सन् 1759 में आलमगीर द्वितीय के बादशाह आलम एवं उसके द्वितीय पुत्र बहादुरशाह द्वितीय के साथ शाही खानदान का अन्त हो गया।
18 वीं शती के अन्त होते होते दिल्ली साम्राज्य का नाम ही शेष रह गया था । बंगाल में सूबेदार, दक्षिण में निजाम, महाराष्ट्र में मराठे, ग्वालियर, इन्दौर, नागपुर, बडौदा और राजस्थान में राजपूत, बुन्देलखण्ड में बुन्देले, पंजाब में सिक्ख तथा आगरा, मथरा एवं दिल्ली के निकटवर्ती क्षेत्रों में जाटों के छोटे-छोटे स्वतन्त्र राज्य स्थापित हो गये थे और राजे महाराजे अपनी झूठी शान के भार से दबकर लड़ते हुए अपना सन्तुलन खो बैठे थे।
मध्य युग भारतीय इतिहास में अत्यन्त अशान्ति का समय माना जाता है । शासकों की अदूरदर्शिता, अमीरों की दलबन्दी, देशी राजाओं और प्रान्तीय
1, विलियम इरविन दी लेटर मुगल्स, पृष्ठ 389. 394 2. वही क्रमशः पृष्ठ 382, 307, 327, 343 3. धर्मविलास धानतराय पृष्ठ 260 4. विलियम इरविन दी लेटर मुगल्स, अध्याय 8