Book Title: Mahakavi Bhudhardas Ek Samalochantmaka Adhyayana
Author(s): Narendra Jain
Publisher: Vitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer
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एक समालोचनात्मक अध्ययन
सन्त साहित्य हमारी सांस्कृतिक धरोहर का सजग प्रहरी एवं संरक्षक तो है ही; साथ ही वह आगामी पीढ़ी का प्रेरणास्त्रोत भी है । सन्तों ने सांस्कृतिक घात - प्रतिघात से उत्पन्न विषम परिस्थितियों में अपना अस्तित्व कायम रखकर प्रतिकूल वातावरण में समबुद्धि रखने एवं सन्तुलित रहने की प्रेरणा दी हैं । इस दृष्टि से सन्त साहित्य की प्रासंगिकता आज भी जीवित एवं ज्वलन्त है। सन्तों ने अपने उपदेशों द्वारा हमारी संस्कृति की रक्षा की, मानवीय मूल्यों को पुष्ट किया, जाति पाँति का भेद मिटाया तथा स्वावलम्बन का भाव जगाकर पुरुषार्थ करने की प्रेरणा दी। इसीलिए सम्पूर्ण सन्त साहित्य में समन्वय भावना, सह-अस्तित्व को स्वीकृति, धार्मिक सहिष्णुता, बन्धुत्व की कामना तथा वसुधैव कुटुम्बकम् की हुई है। यहाँ तक कहा जा सकता है तथा अनुभव किया जा सकता है कि भारतीय संविधान में जो धर्मनिरपेक्षता तथा जनतन्त्रीय समाजवाद दृष्टिकोण होता है, वह सन्त साहित्य की ही देन है या सन्तों की वाणियों का ही प्रतिफल है। साथ ही वर्तमान में व्यक्ति, समाज, राष्ट्र एवं विश्व की समस्त जटिल से जटिल समस्याओं के समाधान हेतु समानता, स्वतन्त्रता, सहिष्णुता, विश्वबन्धुता जैसे अनेक प्रदेय, स्रोत या माध्यम है; जिनके कारण आज भी सन्त साहित्य की उपयोगिता, महत्ता एवं प्रासंगिकता असंदिग्ध हैं
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