Book Title: Mahakavi Bhudhardas Ek Samalochantmaka Adhyayana
Author(s): Narendra Jain
Publisher: Vitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer
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महाकवि भूधरदास : अद्वैतवादी कह सकते हैं और न एकेश्वरवादी, दोनों का मिला जुला भाव इनकी बानी में मिलता है। इनका लक्ष्य एक ऐसी सामान्य भक्ति पद्धति का प्रचार था, जिसमें हिन्दू और मुसलमान दोनों योग दे सकें और भेदभाव का कुछ परिहार हो । बहुदेवोपासना, जवतार और मूर्तिपूजः का खन्न चे मुसलमानी जोश के साथ करते थे और मुसलमानों की कुरबानी (हिंसा), नमाज, रोजा आदि की असारता दिखाते हुये ब्रह्म, माया, जीव, अनहदनाद, सृष्टि, प्रलय आदि की चर्चा पूरे हिन्दू बह्म ज्ञानी बनकर करते थे । सारांश यह है कि ईश्वर पूजा की उन भिन्न भिन्न बाह्य विधियों पर से ध्यान हटाकर, जिनके कारण धर्म में भेदभाव फैला हुआ था, ये शुद्ध ईश्वर प्रेम और सात्त्विक जीवन का प्रचार करना चाहते थे।" ।
इसी प्रकार डॉ. हरदसशर्मा सुधांशु ने अपने लेख “सन्त कवियों का हिन्दी साहित्य में योगदान" में लिखा है - "सन्त कवियों ने सिद्धों और नाथों की योग साधना को, जैनों और बौद्धों की अहिंसा को, वैष्णवों के सात्त्विक जीवन को प्रपत्तिवाद को अपनाया है । वेदान्त के अद्वैतवाद की झलक उनके काव्य में सर्वत्र देखने को मिलती है - साथ ही सूफीमत की प्रेम साधना का प्रभाव उन्होंने ग्रहण किया है। 2
डॉ. श्यामसुन्दरदास के अनुसार • “कबीर की निर्गुण शाखा वास्तव में योग का ही परिवर्तित रूप है जो सफी, इस्लामी तथा वैष्णव मतों से भी प्रभावित हुई थी।" ' इन सन्तों ने उपासना में निर्गुण की प्रतिष्ठा करके तथा परमार्थ सिद्धि में वेदों, पुराणों तथा कुरान आदि की गौणता दिखाकर एक ऐसी भूमिका तैयार की; जिस पर हिन्दू और मुसलमान दोनों समान भाव से खड़े हो सकते थे।
डॉ. रामकुमार वर्मा के अनुसार - “नाथपंथ का विकसित रूप सन्त काव्य में पल्लवित हुआ; जिसका आदि ऐतिहासिक सिद्धों के साहित्य में है । गोरखनाथ ने अपने पंथ के प्रचार में जिस हठयोग का आश्रय ग्रहण किया था, वही हठयोग 1. हिन्दी साहित्य का इतिहास- आचार्य रामचन्द्र शुक्ल पृष्ठ 65 2. प्रकाशित पत्राचार अध्ययन संस्थान, राजस्थान विश्वविद्यालय जयपुर पृष्ठ 5 3. हिन्दी साहित्य - डॉ. श्यामसुन्दरदास पृष्ठ 139 दशम् संस्करण 4. हिन्दी साहित्य - डॉ.श्यामसुन्दरदास पृष्ठ 143