Book Title: Mahakavi Bhudhardas Ek Samalochantmaka Adhyayana
Author(s): Narendra Jain
Publisher: Vitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer
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एक समालोचनात्मक अध्ययन
विचार करते समय यह बात अति स्पष्ट हो जाती है कि सन्त मत ने विविध प्रभावों को ग्रहण किया था। उसके भावपक्ष एवं कलापक्ष के अनेक सांस्कृतिक एवं दार्शनिक आधार हैं; जिनका विवेचन निम्नलिखित है
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सन्तमत के दार्शनिक एवं सांस्कृतिक आधार उपनिषद्, वेदान्त, नाथपन्थ, इस्लाम धर्म, बौद्धधर्म तथा सूफी मत आदि हैं। उन्होंने उपनिषद् से ब्रह्म. जीव, जगत और माया सम्बन्धी विचारों के साथ-साथ तत्सम्बधी उपमानों और अप्रस्तुत योजनाओं को ग्रहण किया है। वेदान्त से सन्तों ने ब्रह्म एवं माया सम्बन्धी विवेचन के साथ आत्मा की अखण्डता एकरसता, अद्वैतता, अकथनीयता आदि ग्रहण की हैं। नाथपन्थी योगियों से शून्यवाद, गुरु की महत्ता, योगसम्बन्धी साधनापद्धति तथा तन्त्रसाधना भी सन्तों द्वारा आत्मसात् की गई है। सन्त साहित्य में एकेश्वरवाद का समर्थन तथा मूर्तिपूजा, अवतारवाद, सामाजिक असमानता आदि का विरोध इस्लामधर्म के प्रभाव के सूचक है। सूफियों के साधनात्मक एवं भावनात्मक आदर्शों के साथ-साथ दाम्पत्य प्रतीकों की योजना तथा प्रेम, सहिष्णुता, वैदिक कर्मकाण्डों एवं बाह्याचारों की आलोचना में बौद्धधर्म का प्रभाव दृष्टिगोचर होता है । '
1. हिन्दी साहित्य का इतिहास, सम्पादक डॉ. नगेन्द्र सन्तकाव्य पृष्ठ 138 से 142
2. साहित्यिक निबन्ध डॉ. गणपतिचन्द्र गुप्त, सन्त काव्य उद्गम स्रोत और प्रवृत्तियाँ
पृष्ठ 91-93 तथा साहित्यिक निबन्ध डॉ. शान्तिस्वरूप गुप्त
सन्त काव्य पृष्ठ 362- 363
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इस प्रकार सन्त साहित्य में उपनिषदों एवं वेदान्त का दार्शनिक विवेचन, ब्रजयानियों की तान्त्रिक साधना, सिद्धों की गूढोक्तियाँ (उलटवासियाँ) नाथपन्थ की योगसाधना, बौद्धों का दुःखवाद एवं बाह्याचारों की आलोचना, सूफियों का प्रेम, इस्लाम का एकेश्वरवाद आदि सभी किसी न किसी रूप में समाहित है । इन सबके अतिरिक्त कुछ विद्वानों ने वैष्णव भक्ति आन्दोलन एवं महाराष्ट्रीय सन्तों का प्रभाव सन्त काव्य पर बताते हुए प्रेमतत्त्व वैष्णवों से लिया हुआ माना है, न कि सूफी मत से । इसके लिए उन्होंने दोनों के प्रेम निरूपण में अन्तर भी स्पष्ट किया है।
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