Book Title: Mahakavi Bhudhardas Ek Samalochantmaka Adhyayana
Author(s): Narendra Jain
Publisher: Vitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer
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एक समालोचनात्मक अध्ययन
(घ) सन्त परम्परा हिन्दी साहित्य में 13 वीं शती से 18 वीं शती तक अनेक निर्गुण सन्त कवियों का आविर्भाव हुआ। इस सन्त कवियों को कालक्रमानुसार तीन भागों में बाँट सकते हैं।
1. पूर्वकालीन सन्त (12 वीं शती से 15 वीं शती तक) • सन्त कवियों में कबीर सर्वश्रेष्ठ एवं केन्द्र स्थानीय है। सन्त कवियों की परम्परा का प्रारम्भ गीत-गोविन्दकार सन्त जयदेव (समय 1179 ई.) से होता है। जयदेव, सदना, लालदेद या लल्ला, नामदेव, त्रिलोचन आदि कबीर से पूर्व काल के सन्तों में प्रमुख हैं।
2. मध्यकालीन सन्त (15 वीं शती से 18 वीं शती तक) - कवीर के सम-सामायिक सन्तों में स्वामी रामानन्द, राघवानन्द, सेनबाई, पीपा, रैदास, धन्नाभगत तथा कबीर के शिष्यों में कमाल, तत्वाजीवा, ज्ञानीजी, जागूदास, भागोदास और सूरत गोपाल आदि के नाम उल्लेखनीय हैं।
कबीर के पश्चात् पंथ निर्माण की प्रवृत्ति को बल मिला। जिसके फलस्वरूप अनेक पंथों एवं सम्प्रदायों का निर्माण हुआ। साथ ही कुछ सन्त इन पंथों से पृथक् रहकर भी अपना अस्तित्व कायम रखे रहे। पंथों में कुछ प्रमुख हैं - कबीर पंथ, नानक पंथ या सिख धर्म, खालसा सम्प्रदाय (सं. 1550 से 1600 तक साध-सम्प्रदाय निरंजनी सम्प्रदाय, लालपन्थ, दादू पन्थ, बावरी पन्थ, एवं मलूक पंथ (सं. 1600-1700 तक) ' बाबालाली सम्प्रदाय, धामी या प्रणामी सम्प्रदाय, सतनामी या सत्यनामी सम्प्रदाय (कोटवा शाखा, छत्तीसगढ़ी शाखा) धरनीश्वरी सम्प्रदाय, दरियादासी सम्प्रदाय, दरिया पन्थ, शिवनारायणी सम्प्रदाय, चरणदासी सम्प्रदाय, गरीब पन्थ, पानप पंथ, रामसनेही सम्प्रदाय ।' कुछ सन्त पंथ से पृथक् भी प्रसिद्ध हुए हैं, जिनमें दीन दरवेश, सन्त बुल्लेशाह, न्लान्या किनाराम अधोरी प्रमुख हैं।'
3. आधुनिकयुगीन सन्त (18 वीं शती से वर्तमान तक) आधुनिक युग में भी कुछ पंथों का प्रादुर्भाव हुआ। यथा साहिब पंथ (तुलसी साहब)
1. हिन्दी सन्त साहित्य-डॉ. त्रिलोकीनारायण दीक्षित पृष्ठ 27 2. वही पृष्ठ 44 से 58 2. वही पृष्ठ 59 से 70 2. वही पृष्ठ 71 से 83 2. वही पृष्ठ 84 से 85